इश्क़ ©प्रशान्त
मुझसे मेरी जान इतनी दूर तुम होना नहीं।
गैर के शाने पे रखकर सर कभी रोना नहीं।
एक ख़्वाहिश की ख़ुदा से जो मुकम्मल हो गई,
पा चुका हूँ साथ तेरा और अब खोना नहीं ।
खूब फलती-फूलती है इश्क़ में दिल की ज़मीं,
ये गुज़ारिश है गलतफ़हमी वहाँ बोना नहीं ।
दाग दामन पे लगाना इस जहाँ का तौर है,
पाक़ है परहन मुहब्बत का, इसे धोना नहीं ।
उस ज़हां के वास्ते भी कुछ खरीदारी करो,
रूह लेकर जाएगी... कपड़ा नहीं, सोना नहीं ।
बात इतनी सी बताने के लिए है ये 'ग़जल'
इश्क़ को बाहों में भरना, इश्क़ को ढोना नहीं।
©प्रशान्त ‘ग़ज़ल’
इश्क़ को बाहों में भरना, इश्क़ को ढोना नहीं... क्या कहने🙏
जवाब देंहटाएंरूह लेकर जायेगी कपड़ा नहीं, सोना नहीं । बेहद उम्दा गज़ल बेटा
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बेबाक़ गज़ल हुई है 💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार आप सभी विदजनों का …💕💕💕💕💕
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल सरजी👌 🥰
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