मोहन की मीरा ©सरोज गुप्ता
मीरा के बस कृष्ण कन्हाई
मान ली वर मोहन मूरत को
माँ ने जो समझाई ||
मीरा के बस कृष्ण कन्हाई.....
बालकाल छवि मन बैठाई,
रूठी उनसे, उन्हें मनाई |
कृष्णमयी जब हुई सयानी,
शुरू हुई इक प्रेम कहानी |
अपने हिय की बात वो अपने
कान्हा को बतलाई ||
मीरा के बस कृष्ण कन्हाई.....
ब्याह के जो वो सासर आई,
अपने कान्हा को संग लाई |
पति का साथ उसे ना भाया,
वो तो थी मोहन की छाया |
लोकलाज की चिंता तज के
प्रेम की अलख जगाई ||
मीरा के बस कृष्ण कन्हाई.....
ठाठ राजसी तज बावरिया,
कान्हा जूँ की बन जोगनिया |
सांस ली अंतिम मोहन द्वारे,
प्रीत सिखाई जग को सारे |
मन की प्रीत लिए हिय में वो
कान्हा में ही समाई ||
मीरा के बस कृष्ण कन्हाई.....
©सरोज गुप्ता
धन्यवाद लेखनी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना maam🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद तुषार
हटाएंअत्यंत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद गुंजित
हटाएंअत्यंत रम्य रचना मैम 🙏
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सूर्यम
हटाएंकान्हा जूं की बन जोगनिया
जवाब देंहटाएंवाह!! आ० मैम बहुत ही अच्छी रचना आपकी
धन्यवाद डियर
हटाएंअति सुंदर एवं भावपूर्ण रचना 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आपका डियर
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