मोहन की मीरा ©सरोज गुप्ता

  


मीरा के बस कृष्ण कन्हाई


मान ली वर मोहन मूरत को

माँ ने जो समझाई ||

मीरा के बस कृष्ण कन्हाई..... 


बालकाल छवि मन बैठाई, 

रूठी उनसे, उन्हें मनाई |

कृष्णमयी जब हुई सयानी,

शुरू हुई इक प्रेम कहानी |

अपने हिय की बात वो अपने

कान्हा को बतलाई ||

मीरा के बस कृष्ण कन्हाई..... 


ब्याह के जो वो सासर आई, 

अपने कान्हा को संग लाई |

पति का साथ उसे ना भाया, 

वो तो थी मोहन की छाया |

लोकलाज की चिंता तज के

प्रेम की अलख जगाई ||

मीरा के बस कृष्ण कन्हाई..... 


ठाठ राजसी तज बावरिया, 

कान्हा जूँ की बन जोगनिया |

सांस ली अंतिम मोहन द्वारे, 

प्रीत सिखाई जग को सारे |

मन की प्रीत लिए हिय में वो

कान्हा में ही समाई ||

मीरा के बस कृष्ण कन्हाई.....

©सरोज गुप्ता

टिप्पणियाँ

  1. कान्हा जूं की बन जोगनिया
    वाह!! आ० मैम बहुत ही अच्छी रचना आपकी

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