ग़ज़ल ©प्रशान्त
वो कहते हैं कुछ भी नया ही नहीं है ।
उन्हें इश्क़ अब तक हुआ ही नहीं है ।
लबों ने छुपाई, नज़र ने बताई ,
सुना दिल ने वो, जो कहा ही नहीं है ।
अगर मर्ज़ होता, तो ईलाज़ करता,
मुहब्बत की कोई दवा ही नहीं है ।
तुम्हें लग रहा हूँ मैं मिश्री सा मीठा,
मुझे तुमने अब तक सुना ही नहीं है ।
है शाहों सा रुतबा , मेरे बाद मेरा ,
विरासत मिली बादशाही नहीं है ।
क़लम अब नए हाथ में है मगर अब,
क़लम में पुरानी सियाही नहीं है ।
समझदार सरकार चुनकर दिखाओ,
‘बला पाँच-साला’ , तिमाही नहीं है ।
वतन का सिपाही ग़ज़ल लिख रहा है,
‘ग़ज़ल’ बस ग़ज़ल का सिपाही नहीं है ।
~ ©प्रशान्त ‘ग़ज़ल’
बेहद उम्दा ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बेबाक़ गज़ल हुई है 💐
जवाब देंहटाएंकमाल ग़ज़ल है🙏
जवाब देंहटाएंबहुत खूब हर एक शेर लाज़वाब💐
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा ग़ज़ल सरजी👌
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