पड़ता ©रजनीश सोनी

 दरपन  उन्हे  दिखाना  पड़ता।

खुद से  भी  बतलाना पड़ता II


रिश्ते    बने   रहें,   इससे   ही,

मोती  सा   सहलाना   पड़ता।


शिथिल काय निष्प्राण न होवे,

इसीलिए ,   टहलाना   पड़ता।


भौतिकता का बोझ न सम्हले,

अब  मन को समझना पड़ता।


भैंस  खुशी मन   दूध जो  देवे,

उसको  भी  नहलाना  पड़ता।


उनके  मन  को  ठेस  न पहुंचे,

बुद्धू  भी   कहलाना   पड़ता।


कुछ   ओछी   चतुराई   करते, 

सबक उन्हें सिखलाना  पड़ता I


बड़े  हुए, बच्चों की  ख्वाहिश,

उनको  भी   बहलाना  पड़ता।


अभी   नवांकुर   है,  प्यारे  हैं,

उन  पर  छत्र  लगाना  पड़ता।


जीवन   के,   झंझावातों   से,

डटकर आंख मिलाना पड़ता।


टंटपाल   घोड़ा   जो   बिगड़े,

उस  पर  ऐड़  लगाना पड़ता।


अब "रजनीश"  घिरा है घन में,

फिर भी प्रीत  निभाना पड़ता।


टंटपाल- उपद्रवी,शरारती,

कहा न मानने वाला।

                              "©रजनीश "

टिप्पणियाँ

  1. सुन्दर रचना सर जी 🙏🍃

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