ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला
भरोसा है जिन्हे खुद पर,खज़ाने छोड़ देते हैँ l
परिंदे पेट भर जाए........तो दाने छोड़ देते हैँ l
हवाएं नीम की,आँगन से अक्सर पूछ लेती है...
घरों के लोग कैसे घर पुराने छोड़ देते हैँ l
वो गलियाँ गाँव की,शादाब बचपन की हसीं यादें..
शहर की चाह मे मौसम सुहाने छोड़ देते हैं l
वो जिनके आ चुके हैँ आग की ज़द में कभी दामन..
वो अक्सर दूसरों के घर जलाने छोड़ देते हैँ l
कहाँ हैं,ज़िन्दगी में हर कदम जिनकी जरूरत है ....
गुज़र जाते हैं दुनियाँ से,फ़साने छोड़ देते हैँ l
बुलंदी की हवस में,'रिक्त' मैं हैरान हूँ कैसे ...
न जाने लोग क्यूँ गुज़रे जमाने छोड़ देते हैँ l
©रिक्त
क्या लाजवाब ग़ज़ल हुई है
जवाब देंहटाएंवाह, वाह कमाल की गज़ल भाई
जवाब देंहटाएंहर शेर जबरदस्त 👏👏👏💐💐
नमन, लेखनी l🙏
जवाब देंहटाएंवाह्हहह!!!बेहद उम्दा ग़ज़ल हुई है 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल हुई है सर जी
जवाब देंहटाएंबेहद उम्दा ग़ज़ल सरजी👌
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