उद्घोष कविता- समर ©रजनीश सोनी
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
1
समर निंद्य,यह बात सत्य है,
किन्तु शान्ति वह कब तक ?
कुटिल पडो़सी की मर्जी औ"
कृपा दृष्टि हो तब तक।।
2
अनय करे कोई हम पर, औ'-
उलटे धौंस जमाये।
ऐसे मुल्क पडो़सी जाने,
कब विपदा आ जाये।
3
भीख कृपा ही मिल सकती है,
करुण राग यदि गाओ।
शीश झुकाना नहीं सोहता,
वीर राग अपनाओ।।
4
विष के कारण ही विषधर से,
हर कोई डरता है।
वहीं भला विषहीन सर्प से,
कौन डरा करता है।।
5
अगर बाहुबल और बुद्धि बल,
नहीं साथ में होगा।
हमको खुद पर हुये अनय को,
सहना ही तो होगा।।
6
जिन्दा रहते इतिहासों में,
समर-सूर, उपकारी।
धिक्कारे जाते, जीवन भर,
कायर औ" व्यभिचारी।।
7
तरुणों! अपने जीवन में तुम,
पौरुष भी अपनाओ।
नशा नाश करता जीवन धन,
इससे मुक्ती पाओ।।
8
काम क्रोध मद लोभ मोह छल-
छद्म कुटिल का घेरा।
तोड़ इन्हें जो बाहर निकला,
वह है कुशल चितेरा।।
9
जागी तरुणाई ही देश की,
दिशा बदल सकती है।
अगर दिशा हो सही, देश की,
दशा बदल सकती है।।
10
सदा पड़ोसी मुल्कों से हम,
सीधे छले गये हैं।
थोपे गये युद्ध हम पर ,
मजबूरन लडे़ गये हैं।।
11
हारे तो हम किस कारण से,
जीते तो किस बल से।
करो शुद्ध विश्लेषण जिससे,
बचें आगामी छल से।।
12
निरुद्देश्य हम लडे़ं नहीं,
कस कमर किन्तु है रहना।
जीवन में वीरत्व भाव,
जब तब हिलोरते रहना।।
13
हानि लाभ का पलड़ा वैसे,-
तो गिरता उठता है।
किन्तु जीत का पलड़ा अक्सर,
सबल ओर झुकता है।।
14
बल पौरुष श्रम धन मिल होता,
शांति समय पर सर्जन।
बल पौरुष मन बल मिल होता,
युद्ध क्रांति का गर्जन।।
15
पढ़ो वही इतिहास कि जिससे,
उठती फड़क भुजायें।
रुधिर उष्ण हो बहे वेगमय,
उठती फूल शिरायें।।
16
जहाँ ताक पर रख यौवन को,
माता दूध पिलाती।
रख आशा विश्वास कि ,
बालक की होगी दृढ़ छाती।।
17
माँ के सत का रखो ख्याल,
खम ठोक युद्ध में जाओ।
राष्ट्धर्म के हित रण में,
अपना करतब दिखलाओ।।
18
जिससे जो हो सके राष्ट्र हित,
तन मन धन जन बल से।
रहें समर्पित अंतर्मन से,
लड़ने को अरिदल से।।
19
छोड़ परिजनों को सैनिक जब,
समर भूमि में जायें।
सभी देशवासी अपना-
अपना कर्तव्य निभायें।।
©रजनीश कुमार सोनी
अत्यंत अत्यंत उत्कृष्ट उद्घोष कविता सर जी, सादर नमन 🙏🍃
जवाब देंहटाएंअत्यंत प्रभावशाली एवं सटीक संदेशप्रद कविता 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंवाह अत्यंत प्रचंड उद्घोष कविता 🙏🌹🌹
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