कविता-पथ परिवर्तन ©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'

नमन, माँ शारदे 

नमन, लेखनी 



नूतन किसलय निश्छल को, 

इस मृदु लता सुकोमल को l

नव विकसित शिशु कोपल को,या अबोध पल्लव दल को,

तज... कर लूँ पथ परिवर्तन? 


किंचित स्लथ, जीर्ण नहीं, 

जरठ, किन्तु हूँ शीर्ण नहीं l

कर्षण कर निज संबल को, निरवलम्ब कर निर्बल को,

तज..कर लूँ पथ परिवर्तन ?


निज सुख़ की प्रत्याशा में, 

विस्तृत घोर निराशा में l

सघन तिमिर में पल पल को,कातर लोचन के जल को,

तज...कर लूँ पथ परिवर्तन?


माना घोर अमावश है,

विधि की भाषा कर्कश है l

मर्दन कर के करतल को,बल दे भावी के छल को,

तज... कर लूँ पथ परिवर्तन??



©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'

टिप्पणियाँ

  1. तज कर लूँ पथ परिवर्तन...क्या अद्भुत शिल्प की कविता है। सुंदर भाव, बिम्ब। नमन है सर

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  2. अत्यंत उत्कृष्ट एवं प्रभावशाली कविता 💐🙏🏼

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  3. किंचित स्लथ, जीर्ण नहीं,
    जरठ किन्तु हूं शीर्ण नहीं....
    सघन तिमिर में पल पल को,
    कातर लोचन के जल को,
    तज...कर लूँ पथ परिवर्तन...
    अहा...अहा...अद्भुत भाव, शिल्प, लय...
    अत्यंत अत्यंत गहन अंतर्मन के प्रश्न उठाती कविता सर जी, सादर नमन 🙏🏻🍃

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  4. बहुत बहुत सुन्दर कविता सरजी👌🙏

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  5. वाह, अप्रतिम, अत्यंत भावपूर्ण कविता सर❣️🙏

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  6. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण कविता 🙏🙏🌹🌹

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