मृत्यु ©️रिंकी नेगी
शरीर त्यागने के बाद,
मुझे नहलाया जा रहा था |
जीवनपर्यन्त ना दिए
दो जोड़ कपड़े किसी ने,
अब नया कपड़ा,
मोल कर लाया जा रहा था |
रो रहे थे वो लोग भी
जो कारण रहे मेरे कष्ट का,
जीते जी जो चल ना पाए साथ,
आज वो हर व्यक्ति मृत शरीर को मेरे,
दाह करने साथ जा रहा था |
जीवन था तो भूख-प्यास थी मुझे,
तब ना पूछा किसी ने मगर
अब काक को भी नाम से,
मेरे भोजन कराया जा रहा था |
मेरी आत्मा परेशान ना करे परिजनों को,
इस डर से हर प्रथा का निर्वाहन
उनसे कराया जा रहा था |
जीवित रहते ना सुनी व्यथा किसी ने,
पर हर कोई मुझको अपना बता रहा था |
कोई ऑफिस की छुट्टी
कोई सहानुभूति के लिए
मेरे किस्से सुना रहा था |
अधूरी कुछ जिम्मेदारियां,
और अपनों के विचलित हृदय देखकर
मैं वापस लौट आना चाह रहा था |
पर आत्मा त्याग चुकी थी शरीर को,
और मैं भी हर पल सांसारिक मोह से दूर जा रहा था |
- ©️। रिंकी नेगी
भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंDhanyawad gunjit ❤️🙏
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐
जवाब देंहटाएंVicharo me kuntha aur kosne ki bhawna hai. Krodhit man ki kundhit dukh ki vyatha
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना 💐
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण रचना रिंकी दी🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत हृदयस्पर्शी 💐💐
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