तमन्ना करके पछताए ©रेखा खन्ना
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
कुछ तमन्नाएं सज़ा होती हैं।
पँखों की चाहत होती है पर रिहाई की जगह कैद मिलती है।
उड़ान भरने को अथाह अम्बर होता है पर पाँव टिकाने को ज़मीं नहीं होती है।
तमन्नाओं का अथाह समंदर तैरने की कला नहीं सिखाता है
बस एक दल-दल की भाँति भीतर और भीतर खींचता ही चला जाता है।
एक लावा उबलता है दिल के भीतर
नाकामी को लेकर फूटता है निराशा का अंकुर।
उस अंकुर पर कोई हसीन फूल नहीं खिलता है
उस पर पनपता है एक जहर जो निगल लेता है सोचने समझने की शक्ति को।
तमन्नाओं को भी ज़रा सब्र नहीं है
बस एक के बाद एक कुकरमुत्ते की भांति विकसित होती है और एक मधुमक्खी का छत्ता बन कर दिन रात डंक मारती हैं।
डंक मार मार कर दिल को घायल करती हैं और नाकामी का एहसास दिलाती हैं।
ख्वाबों का भी हकीकत से दूर तक कोई लेना देना नहीं है वो तो हर रोज़ सज जाते हैं पलकों तले और टीस बन जाते हैं सूरज की पहली किरण के उगते ही।
सारा दिन आंँखों में रिडकते रहते हैं कि शायद कोई रास्ता मिल जाए और हकीकत की दुनिया में कदम रख पाएं।
हकीकत, हकीकत तो जैसे अपनी ही दुनिया में मगन है। तमन्नाओं और ख्वाबों को अपने सख्त पत्थरों से तोड़ने का मौका ढूढँती रहती है।
ऐसे जैसे जन्म जन्म का बैर हो। ऐसे जैसे खुद के आगे किसी के वजूद को कुछ ना समझती हो।
सच ही तो है हकीकत के विशालकाय वजूद के आगे तमन्नाओं और ख्वाबों का वजूद कहांँ ठहर पाता है।
तमन्ना, ख़्वाब, हकीकत सब के सब एक दूसरे के दुश्मन। जैसे ही एक सर उठाता है हकीकत की तलवार वार करने का चक्रव्यूह रचने लगती हैं और जीने की चाहत लिए तमन्नाओं और ख़्वाबों का मरण हो जाता है और दफ़न कर दिया जाता है दिल की गहराइयों में बनी हुई अदृश्य कब्र में। पर ये अंत नहीं है तमन्नाएं और ख़्वाब फिर उग आते हैं ऐसे जैसे अमृत पी रखा है और फिर एक नया सफ़र तय करते हैं जीवन से मरण तक का हकीकत की ज़हर बुझी कंटीली झाड़ियों में फंस कर।
दिल के एहसास। ©रेखा खन्ना
भावपूर्ण💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण एवं जीवन यथार्थपरक 🙏🏼💐
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना 💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण 🌹
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