गीत- कविता ©दीप्ति सिंह 'दीया'
नमन, माँ शारदे
नमन, लेखनी
जब समसि शब्द को भाव के संग पिरोती है,
कविता संवेदनशील तभी होती है ।
जब जन-जन की पीड़ा पृष्ठों पर बोती है ,
कविता संवेदनशील तभी होती है ।
जब अन्न उगाने वाला भूखा सोता है,
और करता जो निर्माण वो बेघर होता है।
जब कष्ट देख इन सबके मसि भी रोती है,
कविता संवेदनशील तभी होती है ।
परिवर्तन संभव है मानस के चिंतन का,
आधार रही है कविता जन आंदोलन का,
जब जन हितार्थ मसि संकल्पों को ढोती है,
कविता संवेदनशील तभी होती है ।
©दीप्ति सिंह 'दीया'
अत्यंत उत्कृष्ट, भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी कविता है डियर🌹🌹
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार एवं सप्रेम अभिवादन आपका प्रिय 💐😊
हटाएंसादर आभार लेखनी 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंकविता संवेदनशील तभी होती है... अत्यंत सटीक गीत🙏
जवाब देंहटाएंहृदय तल से आभार आपका गुंजित 💐😊
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर गीत maam 🙏🙏
जवाब देंहटाएंहृदय से आभार आपका तुषार 💐😊
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