लाड़ली ! ©परमानन्द भट्ट
तू मेरा दिल जान लाड़ली ।
मेरे घर की शान लाड़ली ।
शोख़ फुदकती सोन चिड़ी सी,
बगिया की मेहमान लाड़ली ।
तेरे से ही घर बन पाया,
जो था सिर्फ मकान लाड़ली ।
मेरे घर के वृन्दावन में
मीठी मुरली तान लाड़ली ।
मिट जाती मर्यादा खातिर,
रखती घर का मान लाड़ली ।
साँसों में ख़ुश्बू भरती हैं
तेरी ये मुस्कान लाड़ली ।
मानस की सुन्दर चौपाई,
गालिब़ का दीवान लाड़ली ।
बेटो को सब रतन समझते,
पर रत्नों की ख़ान लाड़ली |
शक्ति स्वरुपा तू सबला है
तलवारों को तान लाड़ली ।
पथ की बाधा से घबराकर,
मत करना विषपान लाड़ली ।
©परमानन्द भट्ट
अत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंभावों से भरी उम्दा ग़ज़ल🙏
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल 👏
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