लाड़ली ! ©परमानन्द भट्ट

 तू मेरा दिल जान लाड़ली ।

मेरे घर की शान लाड़ली ।


शोख़ फुदकती सोन चिड़ी सी,

बगिया की मेहमान लाड़ली ।


तेरे से ही घर बन पाया,

जो था सिर्फ मकान लाड़ली ।


मेरे घर के वृन्दावन में

मीठी मुरली तान लाड़ली ।


मिट जाती मर्यादा खातिर,

रखती घर का मान लाड़ली ।


साँसों में ख़ुश्बू  भरती हैं

तेरी ये मुस्कान लाड़ली ।


मानस की सुन्दर चौपाई,

गालिब़ का दीवान लाड़ली ।


बेटो को सब रतन समझते,

पर रत्नों की ख़ान लाड़ली |


शक्ति स्वरुपा तू सबला है

तलवारों  को तान लाड़ली ।


पथ की बाधा से घबराकर,

मत करना विषपान लाड़ली ।



©परमानन्द भट्ट

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