कविता रानी ©गुंजित जैन
शब्दों से है आनाकानी,
कहनी हिय की व्यथा पुरानी,
वर्षों बीत गए, आ जाओ,
क्यों तुम रूठी कविता रानी?
प्रेम हमारा नित्य, असीमित,
था साहित्य जगत में चर्चित,
वृक्ष विशाल ताल छंदों के,
पृष्ठों की भू पर थे विसरित,
पादप चले गए जीवन से,
कैसे होगी पवन सुहानी?
वर्षों बीत गए, आ जाओ,
क्यों तुम रूठी कविता रानी?
भावों का लेकर दिनकर नित,
संवेदन-वर्षा से सिंचित,
लेकर पोषक पोषण लय का,
हुई प्रणय नव-कोंपल विकसित,
होती शुष्क प्रेम की कोंपल,
वर्षा जब से हुई सियानी,
वर्षों बीत गए, आ जाओ,
क्यों तुम रूठी कविता रानी?
अलंकार से हो आभूषित,
रम्य अनेक रसों से लेपित,
ललित षोडशी नव-यौवन की,
करती रही मधुर स्वर गुंजित,
गई अलंकारों की शोभा,
रुकी स्वरों की कोमल वानी,
वर्षों बीत गए, आ जाओ,
क्यों तुम रूठी कविता रानी?
©गुंजित जैन
अत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी कविता 💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम🙏
हटाएंबहुत सुंदर कविता👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार भाई जी🙏
हटाएंसादर आभार, नमन लेखनी🙏
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