गीत-जिंदगी ©संजीव शुक्ला

 तलाश में उम्र जिसकी गुज़री,वो जिंदगी भी न पास आई

सभी के हिस्से में आए सागर , हमारे हिस्से में प्यास आई l


अज़ब कहानी है तिश्नगी की,

हमें भी चाहत थी जिंदगी की l

खुदा की मूरत बसा के दिल में,

अजीब ख़्वाहिश थी बन्दगी की l

वो घर खुदा को न रास आया,न घर को मूरत ही रास आई l


ये वादियाँ बाग ये बहारें,

हसीं गुलों की खिली कतारें l

हवा के ठंडे शरीर झोंके,

जवान सावन नरम फुहारें l

हसीन रंगत महक गुलों की,पसंद रिमझिम न खास आई l


कभी हसीं था जहान सारा,

हसीन लगता था हर नज़ारा l

हसीन गुलशन जमीन सारी,

क़े बाँह में आसमान सारा l

मगर ख्यालों की क्यारियों में, न फूल महके न घास आई l


खयाल ख्वाबों का वो जहाँ था,

हसीन फूलों का आशियाँ था l

ये ज़ख्म, राहों में बिखरे काँटे,

ये ठोकरों का सफर कहाँ था l

सुबह तमन्ना जो हँस के निकली, वो शाम को घर उदास आई l

©रिक्त

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