गीत-जिंदगी ©संजीव शुक्ला
तलाश में उम्र जिसकी गुज़री,वो जिंदगी भी न पास आई
सभी के हिस्से में आए सागर , हमारे हिस्से में प्यास आई l
अज़ब कहानी है तिश्नगी की,
हमें भी चाहत थी जिंदगी की l
खुदा की मूरत बसा के दिल में,
अजीब ख़्वाहिश थी बन्दगी की l
वो घर खुदा को न रास आया,न घर को मूरत ही रास आई l
ये वादियाँ बाग ये बहारें,
हसीं गुलों की खिली कतारें l
हवा के ठंडे शरीर झोंके,
जवान सावन नरम फुहारें l
हसीन रंगत महक गुलों की,पसंद रिमझिम न खास आई l
कभी हसीं था जहान सारा,
हसीन लगता था हर नज़ारा l
हसीन गुलशन जमीन सारी,
क़े बाँह में आसमान सारा l
मगर ख्यालों की क्यारियों में, न फूल महके न घास आई l
खयाल ख्वाबों का वो जहाँ था,
हसीन फूलों का आशियाँ था l
ये ज़ख्म, राहों में बिखरे काँटे,
ये ठोकरों का सफर कहाँ था l
सुबह तमन्ना जो हँस के निकली, वो शाम को घर उदास आई l
©रिक्त
बेहद भावपूर्ण गीत सर,✨❤️🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं संवेदनशील गीत सृजन 🙏🏼💐
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत सरजी🙏🙏
जवाब देंहटाएंबेहद कमाल गीत हुआ है सर🙏
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