जैसे बहती है नदी ©रेखा खन्ना
जैसे बहती है नदी
मैं भी बहना चाहती थी हो कर उन्मुक्त
लेकिन राह आसान ना थी
क्योंकि रस्मों रिवाजों की बेड़ियों में जकड़ी हुई थी।
मेरे बहाव को रोकने के लिए कई अवरोध और ऊँचे बाँध बनाए गए थे।
जैसे बहती है नदी और अपना रास्ता खुद बना कर खोज लेती है समंदर को और उसमें विलीन हो जाती है और जिम्मेदारी सौंप देती है समंदर को उसे संभाल कर रखने की मैं कभी उस समंदर तक पहुंँच ना पाई
और ना ही उसमें विलीन हो सकी।
मेरा बहाव मुझ तक ही सीमित रह गया और
मैं खुद के भीतर ही एक तूफान का रूप लेती जा रही हूँ
अभी तक इस तूफान में सब कुछ तबाह कर के अपनी रास्ता ढूँढ लेने का हौंसला नहीं है पर एक दिन ऐसा जरूर आएगा जब ये तूफान विकराल रूप लेकर सब रिश्ते नातों को पीछे छोड़कर अपनी राह चुन लेगा और निकल पड़ेगा अपने मनचाहे सफ़र को।
बहाव जरूरी है लेकिन रोक लगाने वाले इस बात को समझते नहीं है। अपना रास्ता चुन कर उस पर चलते हुए मंजिल तक पहुंँचना जरूरी है। जीवन का सफ़र तभी मुक्कमल होगा जब वो हर अड़चन को दूर करके अपने गंतव्य स्थान तक पहुंँचेगा।
हमारा सफ़र जन्म से लेकर मृत्यु तक का तय है उसे एक नदी की भांति ही बहना है। अवरोध दूर करने की क्षमता को पहचानते हुए हमें आगे बढ़ना है।
©दिल के एहसास। रेखा खन्ना
अत्यंत गहरे भाव डियर ❣️❣️❣️🌹🌹
जवाब देंहटाएंJi bahut shukriya apka
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण एवं प्रभावशाली सृजन 🙏🏼💐
जवाब देंहटाएंJi bahut shukriya apka
हटाएंअत्यंत उत्कृष्ट लेख मैम
हटाएंबहुत शुक्रिया आपका
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण🙏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका
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