पग धूल ©लवी द्विवेदी
भटककर आ रही हूँ द्वार तेरे हरि शरण दे दो।
मुझे बस चाहिए पग धूल, मृण में आवरण दे दो।।
मुझे ना श्वास की आशा न आशा आत्म तर्पण की,
न तुझसे चाहिए ऐश्वर्य, वैभव, डोर तोरण की।
पखारूँ अश्रुओं से पग प्रभू अपने चरण दे दो।
मुझे बस चाहिए पग धूल, मृण में आवरण दे दो।।
कृपालू श्वास मेरी रुँध रही वातावरण कैसा?
मुझे पहचानने में देर क्यूँ इसमें कृपण कैसा?
प्रभू इतना करो बस व्यय प्रणय के आभरण दे दो।
मुझे बस चाहिए पग धूल, मृण में आवरण दे दो।।
विदारण भक्ति होती जा रही जीवन मरण रण में,
तुम्हारी वेणु के स्वर कर्ण तक आते न विचरण में।
प्रभू मेरे दृगों को हरि दरश के जागरण दे दो।
मुझे बस चाहिए पग धूल, मृण में आवरण दे दो।।
©लवी द्विवेदी 'संज्ञा'
अत्यंत उत्कृष्ट एवं भावपूर्ण गीत सृजन 💐
जवाब देंहटाएंपखारूं अश्रुओं से पग प्रभू अपने चरण दे दो...अहा। अत्यंत मनहर, भावपूर्ण गीत। नमन।
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट भावपूर्ण तुति गीत सृजन बेटा 🙏🌺
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत👌👌
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