गीत ©रानी श्री

 


मैं कहीं पर भी जाऊँ, 

ख़ुद में ही तुझको पाऊँ।

तुझे ख़्वाबों में बसा कर,

तुझमें फना हो जाऊँ।


ये लबों की मुस्कराहट,

मेरी जां निकालती हैं ।

के वफ़ा की ये अदाएं,

मुझको संभालती हैं।

तू जो सामने खड़ा है, 

मेरे होश मैं गवाऊँ।

तुझे ख़्वाबों में बसा कर, 

तुझमें फना हो जाऊँ।


है सहर सा मेरे दिल के, 

शब स्याह का सनम तू।

मेरे साथ जीने मरने,

की जो ले ले ये कसम तू।

तुझे पलकों पे सजाऊँ, 

तुझे रूह में बसाऊँ।

तुझे ख़्वाबों में बसा कर ,

तुझमें फना हो जाऊँ।

©रानी श्री

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'