ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला
बारिश का आसमाँ है सहाबों में रहेंगे l
यूँ चंद आफ़ताब नकाबों में रहेंगे l
ज़ज़्बात शाइरी की शक़्ल ले सके अगर...
तहरीर-ए-वफ़ा बन के निसाबों में रहेंगे l
सहरा की रेत औऱ अक़्स माहताब का....
हम बस इन्ही हसीन सराबों में रहेंगे l
गुलदान में सजें ये मुकद्दर में कहाँ है....
काँटों के साथ सुर्ख गुलाबों में रहेंगे l
गर बेखयाल हो के कभी छू गया कोई...
छेड़ेंगे कोई तान रबाबों में रहेंगे l
खामोश क़ब्र में जो उतर जाए, हम नहीं...
तहरीर में मिलेंगे........ क़िताबों में रहेंगे l
आया करेंगे 'रिक्त'ज़हन में कभी कभी..
बाक़ायदा माज़ी के हिजाबों में रहेंगे l
© संजीव शुक्ला रिक्त
वाह बेहद खुबसूरत ग़ज़ल सरजी🙏🙏
जवाब देंहटाएंवाह्हहह क्या कहने!!!! बेहद खूबसूरत गज़ल 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंउम्दा ग़ज़ल सर🙏
जवाब देंहटाएंबेहद खूब
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