ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला

 बारिश का आसमाँ है सहाबों में रहेंगे l

यूँ चंद आफ़ताब नकाबों में रहेंगे l


ज़ज़्बात शाइरी की शक़्ल ले सके अगर... 

तहरीर-ए-वफ़ा बन के निसाबों में रहेंगे l


सहरा की रेत औऱ अक़्स माहताब का.... 

हम बस इन्ही हसीन सराबों में रहेंगे l


गुलदान में सजें ये मुकद्दर में कहाँ है.... 

काँटों के साथ सुर्ख गुलाबों में रहेंगे l


गर बेखयाल हो के कभी छू गया कोई... 

छेड़ेंगे कोई तान रबाबों में रहेंगे l


खामोश क़ब्र में जो उतर जाए, हम नहीं... 

तहरीर में मिलेंगे........ क़िताबों में रहेंगे l


आया करेंगे 'रिक्त'ज़हन में कभी कभी.. 

बाक़ायदा माज़ी के हिजाबों में रहेंगे l

© संजीव शुक्ला रिक्त

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'