कविता- विहीन ©लवी द्विवेदी
नमन, माँ शारदे
नमन लेखनी
छंद -पद्धरि छंद (सम मात्रिक )
चरण - चार,
मात्रा -१६
यति १०,६ या ८ ,८
चरणांत जगण( ।ऽ। )
हिय पीर करे, कब तक विहार।।
आकाश द्रवित रुग्णित समीर,
घन करुण नाद हिय कर्ण भीर।
तारक गण क्षण क्षण हों अधीर,
शशि का वियोग दे हृदय चीर।
आभा कुरूप संयम कुठार,
दामिनी व्यग्र करती प्रहार।
पीड़ा कठोर दे अंधकार,
भीरुता कौन देखे अपार।
हिय पीर करे कब तक विहार।।
तम वक्ष दीप्ति बिन है विहीन,
घृत शुष्क मौन बाती महीन।
पीड़ा अभिलाषा में विलीन,
हो कब विहान प्रात: नवीन।
मस्तक रेखाएं द्वार द्वार,
बन भिक्षु लगाती हैं गुहार,
प्रिय प्राण दीप रह गृह बिसार,
दीपक प्रशमन करते बयार।
हिय पीर करे कब तक विहार।।
रुग्णित धमनी में रक्त व्यग्र
प्राणों की प्रत्याशा समग्र।
केंद्रित होकर एकांत अग्र,
मन ले विचार दे छोड़ नग्र।
हिय के समीप जन के विचार,
यदि प्रेम समर्पण दें नकार।
कर देय तिरस्कृत पिय पुकार।
निश्चित है अंतिम संस्कार।
हिय पीर करे कब तक विहार।।
©लवी द्विवेदी
हिय पीर करे कब तक विहार...वाहहहहहह🙏🙏 उत्कृष्ट छंदबद्ध कविता है दीदी
जवाब देंहटाएंसादर आभार भैया 🙏🍃
हटाएंनिश्चित है अंतिम संस्कार 🙏🌺
जवाब देंहटाएंअत्यंत गहन भाव समेटे हुए बहुत ही हृदयस्पर्शी छंद बद्ध गीत बेटा 👏👏👏🌺🌺🌺❣️❣️❣️
अत्यंत उत्कृष्ट एवं संवेदनशील छंद बद्ध कविता 💐
जवाब देंहटाएंअद्भुत कविता 🙏🙏
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