ग़ज़ल ©सरोज गुप्ता
नमन माँ शारदे
नमन लेखनी
जुदाई में किसी को डूब करके याद करना क्या,
उदासी की घटाओं को निगाहों में उतरना क्या ।
दिखे जो आइना हमको तो पूछे सौ सवालों को,
न हो दीदार दिलबर का तो फिर सजना सँवरना क्या ।
भरें हो अश़्क आँखों में, बहा दो खुद-ब-खुद इनको,
वगरना डूब कर इनमें अजी फिर रोज़ मरना क्या ।
मोहब्बत की खुशी चेहरे पे दिखती नूर बन करके,
सजावट के हज़ारों दाँव पेंचो से निखरना क्या ।
ये मुश्को-इश्क छिप सकती नहीं यारों छुपाने से,
गुले-गुलशन को गुलफामों से दूरी अब ये करना क्या ।
परिंदे घोंसले में लौट आते...... शाम होने पर,
बिना मकसद गली की धूल कदमों से बिथरना क्या ।
©सरोज गुप्ता
उम्दा ग़ज़ल मैम🙏
जवाब देंहटाएंसादर आभार लेखनी 🙏🌺
जवाब देंहटाएंसरोज गुप्ता
बेहद आलातरीन गजल हुई है मैम❣️✨🙏
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार अंशुमान 🙏🌺
हटाएंवाह क्या बात है!!!बेहद खूबसूरत गज़ल 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंसादर आभार डियर 🙏🌺
हटाएंसादर आभार लेखनी परिवार 🙏🌺
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल🙏🙏
जवाब देंहटाएंस्नेहिल आभार बेटा 🙏🌺
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