ग़ज़ल ©रानी श्री

नमन, माँ शारदे 

नमन लेखनी

2122 2122 212 


ज़िंदगी का इक मज़ा दे दे मुझे,

गर गलत हूँ तो सज़ा दे दे  मुझे।


नज़्म कुछ लिख दूं तुम्हारे नाम के,

लिखने की थोड़ी रज़ा दे दे मुझे।


मेरे हिस्से ज़िंदगी गर हो नहीं,

कत्ल कर मेरी कज़ा दे दे मुझे।


पेश करती हूँ लिखे कुछ शेर मैं 

तू ज़रा बस हब्बज़ा दे दे मुझे।


तोड़ कर ख़ामोशियां कुछ बोल दे,

कह रही मैं, तू जज़ा दे दे मुझे।


है ज़रा से हौंसले मुझमें अभी,

हिज़्र में कोई अज़ा दे दे मुझे।


जोश में चिंगार है कि अब जले,

तू कहीं से भी फ़ज़ा दे दे मुझे।


इश्क़ का दे इल्म रानी जो तुझे 

मुकतज़ा वो मुर्तज़ा दे दे मुझे।


©रानी श्री

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'