ग़ज़ल ©प्रशांत 'ग़ज़ल'

नमन, माँ शारदे 

नमन, लेखनी  


दिल पे पत्थर रख लिया , हालात बेहतर कर दिए ,

आस्तीनें खोल दीं, कुछ सांप बे-घर कर दिए । 


इश्क़ ढाई अक्षरों का साल ढाई तक पढ़ा,

बेवफ़ा ने अश्क़ के फिर ढाई अक्षर कर दिए। 


क्या जरूरी है बनाता ताज जैसा इक महल,

फर्श, छत, दीवार, दर सब संगेमरमर कर दिए। 


कर रहा था हाथ पीले बेटियों के जब जहाँ,

बेटियों ने थाम परचम ख़ुद मुक़द्दर कर दिए। 


दिल के हर ज़ज्बात को रक्खा छिपाकर आजतक, 

पर 'ग़ज़ल' तेरी कलम ने सब उज़ागर कर दिए। 

©प्रशांत 'ग़ज़ल'

टिप्पणियाँ

  1. पर 'गजल' तेरी ग़ज़ल ने सब उजागर कर दिये, वाहहहहहह, बेहतरीन ग़ज़ल प्रशांत जी

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  2. सब एक से बढ़कर एक शेर हुए हैं भाई जी, वाहहहहहह। जबरदस्त

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  3. वाहहहह बेहतरीन ग़ज़ल भाई जी

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  4. बेहतरीन ग़ज़ल बेटा 🙏🌺
    हर शेर लाजवाब 👌👌🌺

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  5. बेहतरीन बेबाक़ गज़ल 💐
    हरेक शेर लाजवाब 💐

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  6. बेहद उम्दा ग़ज़ल सरजी🙏🙏

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