रोशनी ©गुंजित जैन

 "पर्स रख लिया, बैग रख लिया और टिफ़िन, वो भी रख लिया। कुछ रह तो नहीं गया...!

घड़ी। हाँ घड़ी रह गयी।" अपनी सूनी कलाई देखते हुए मैं बोला।


वही घड़ी जो शादी की दूसरी सालगिरह पर तुमने मुझे दी थी, उपहार के तौर पर। उस दिन को अब 8 साल हो गए हैं। 

उस घड़ी का वो सुनहरा फ्रेम आज भी वैसा ही है। हाँ, कुछ जगहों से उसकी सुनहरी परत उतर गई है और घड़ी का पट्टा भी मैंने बदलवा लिया है। दुकान वाले ने तो कहा था 'साहब पुरानी घड़ी को सही करवाकर क्या करोगे, नई लेलो', मगर इस से तुम्हारी यादें जुड़ीं थीं, तो कैसे जाने देता! तुम्हारा दिया आख़िरी तोहफ़ा जो था।


वैसे तुम्हारे उपहार देने का कारण भी मैं जानता हूँ। 

मैं शुरू से ही समय का पक्का नहीं था। हमेशा देर से उठना, देर से तैयार होना। जायज़ सी बात है, दफ्तर के लिए भी अक्सर देर हो ही जाती थी। तुमने इस घड़ी को 15 मिनट आगे भी किया था, ताकि मैं समय पर दफ्तर के लिए निकल जाऊँ।

फिर भी कई बार मैं लेट हो जाता था।

तुम हर बार खीझकर कहती थी  

"ओफ़्फ़ो, आज फिर लेट। क्या करूँ मैं तुम्हारा!"

और मैं अतरंगी सी शक्लें बनाने लगता था।

सच कहूँ तो इस पुरानी घड़ी की 'टिक टिक' में भी अब मुझे तुम्हारी 'चिक चिक' सुनाई पड़ती है।


अब देर से उठने की आदत नहीं रही। रोशनी को तैयार जो करना होता है, और फिर खाना, वो भी तो बनाना होता है। हाँ, कुछ-कुछ गोल रोटियाँ बनाने लगा हूँ अब।


आज तुम नहीं हो। पर तुम्हारी यादें मुझमें, इस घर में, इस घड़ी जैसी हर छोटी चीज़ में समाई है, जो कभी जाती ही नहीं। या यूँ कहूँ कि मैं जाने देना नहीं चाहता!


"ओफ़्फ़ो पापा, आज फिर लेट। क्या करूँ मैं आपका!" एकाएक रोशनी की ये आवाज़ मेरे कानों में पड़ती है। और मेरे ख्यालों की गाड़ी आगे बढ़ते-बढ़ते वहीं थम जाती है।


बिल्कुल तुम पर गई है रोशनी। 

बहुत डाँटती है मुझको, तुम्हारी तरह। उससे भी कई ज्यादा, मुझसे प्यार करती है, तुम्हारी तरह।


तुम साथ तो नहीं, मगर उसके रूप में तुम्हें हमेशा साथ पाता हूँ। वो मुस्कराती है तो मुझे तुम याद आती हो, वो डाँटती है तो मुझे तुम याद आती हो। उसकी हर छोटी से छोटी चीज़ में मैं तुम्हारी छवि देखता हूँ।

देखो न, आज भी वो लेट होने पर हू-ब-हू तुम्हारी तरह डाँट रही है। पर अब मैं अतरंगी शक्लें नहीं बनाता, अब बस एक मुस्कान दे देता हूँ। एक सरल सी, सादगी भरी मुस्कान।


"अब देर हो रही है रोशनी। आओ चलो, मैं तुम्हें स्कूल छोड़ता हुआ दफ़्तर चला जाऊँ...!"


©गुंजित जैन

टिप्पणियाँ

  1. शानदार लघुकथा ,💐

    जवाब देंहटाएं
  2. खूबसूरत रिश्तों की बेहद खूबसूरत कहानी बेटा 🌺🌺🌺🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. अत्यंत भावपूर्ण एवं हृदयस्पर्शी लघुकथा 💐

    जवाब देंहटाएं
  4. बेहद सुंदर लघुकथा भाई👌👌

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'