गज़ल ©दीप्ति सिंह

 इस क़दर मुहब्बत कर जाओ,कि जिस्म समंदर हो जाए ।

मैं तेरे अंदर खो जाऊँ, तू मेरे अंदर खो जाए।


ये ख़ुशियाँ कुछ पल की भी हों,तो भी है ये मंज़ूर मुझे, 

बस लम्हा इतना क़ाबिल हो,कि ख़ास वो मंज़र हो जाए ।


पहलू में इतने पास रहो,कि साँसों में साँस घुल जाए,

और इन साँसों की गर्मी से, हर ख़्वाहिश बंजर हो जाए ।


जब-जब ये नज़रें मिलती हैं, तू रूह मेरी छू लेता है,

नज़रों के यूँ ही मिलने से, हर ग़म छूमंतर हो जाए ।


ये हवा तुम्हें जब छूती है, महसूस मुझे हो जाता है, 

जो छूले मुझको ग़र यूँ ही, तो आज बवंडर हो जाए ।


तू आज मयस्सर हो न हो, तू साथ उमर भर हो न हो, 

बस नाम हो तेरा साँसों में, और साँसे पत्थर हो जाए ।


मन प्यासा है मन काला है, बिन तेरे कहाँ उजाला है, 

जो तू बस जाए रग-रग में, तो 'दीया' बेहतर हो जाए ।


©दीया

टिप्पणियाँ

  1. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल डियर 🌺🌺🙏
    सरोज गुप्ता

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  2. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है मैम🙏😍

    जवाब देंहटाएं

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