अंतरद्वन्द ©रजनी सिंह
कुछ है अनकही सी
अधूरी सी मगर पूरी
तुम हो के न हो
एक एहसास चारों तरफ तुम्हारी
आगोश में होने का
कुछ कहूँ तो कैसे
चुप रहूँ तो कैसे
अजीब कश्मकश है
कुछ है जो बयाँ होता नहीं
कुछ है जो छुपाया जाता नहीं
निडर भी है
सुकूँ भी है
दूरी भी है
नजदीकी भी है
है कुछ ख्वाब सा
कुछ हकीकत सा
क्या बोलूं लब इजाजत नहीं देते
दिल शोर मचा रहा है
एक खींच-तान
रिवाजों और दिल के बीच
होती है हर रोज
एक बंधन तोड़ कर
दूसरे में बँध जाना चाहता है
बहुत अजीब है सब कुछ
अटपटा सा मगर सुलझा हुआ
बहुत अरमान थे
आसमान छूना था
सब था मगर हौसला नहीं था
दिल था दिमाग़ था सोच थी
मगर सोच को आकार देने की हिम्मत नहीं थी
माफ़ कर देने की मेरी आदत
मुझे अंदर से खोखला कर गई
खुल कर न विरोध किया न प्यार किया
एक घुटन भरी जिंदगी जीती रही
पता नहीं मगर कुछ है जो
मुझे दुख में हमेशा डाल देता है
मै रोना नहीं चाहती मगर रुला जाता है
मै हॅसने से पहले सहम जाती हूँ
कि क्या पता इस हसीं की कीमत
अगले ही पल आसुओं से चुकानी पड़े
किसी ने शायद देखा नहीं
कि मै हर इंसान को
खुद से दूर क्यों रखना चाहती हूँ
मै हर छोटी छोटी बात को
दिल पर लेती हूँ
मुझे बहुत जल्दी हर्ट होता है
इसलिए मेरे दोस्त कम हैं
और जो हैं भी उन्हें मैंने हक़ नहीं दिया है
जरूरत से ज्यादा कि बाद में
मुझे उनकी किसी बातों से हर्ट हो
नहीं मै ऐसा होना नहीं चाहती हूँ
मै भी सहज़ होना चाहती हूँ
मगर सहज़ होने में
नुकसान कर लेती हूँ
इमोशंस हावी हो जाते हैं................
©रजनी सिंह
अत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐💐💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण सृजन 💐💐💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण🙏
जवाब देंहटाएंBahut sundar didi👌👌
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