गीत - कल कदाचित मैं रहूंँ या ना रहूंँ! ©अंशुमान मिश्र
कल कदाचित मैं रहूंँ या ना रहूंँ!
चक्षु में प्रेमाश्रुओं की धार जो,
बन रही तेरा नवल श्रृंगार जो,
लाख रुकने के विफल संघर्ष कर,
गिर रही फिर भी, तनिक छूकर अधर,
आज बहने दे इसी में, क्या पता..
कल कदाचित बह सकूंँ, या ना बहूंँ!
कल कदाचित मैं रहूंँ या ना रहूंँ..
मैं कि तेरे बिन यहांँ एकल रहा,
और एकल किस तरह, वंचन सहा!
उन सहस्त्रों यातनाओं की व्यथा,
और तेरे बाद की मेरी कथा!
आज मुझको बोलने दे, क्या पता..
कल कदाचित कह सकूंँ, या ना कहूंँ!
कल कदाचित मैं रहूंँ या ना रहूंँ..
भाग्य से कंगाल, हूंँ आशा रहित,
आज हूंँ एकल, नियति से हूंँ छलित,
आज दे दे कष्ट जितना हो सके,
दृग युगल ना सो सके, ना रो सके,
सह रहा हूंँ आज सब, पर क्या पता,
कल कदाचित सह सकूंँ, या ना सहूँ!
कल कदाचित मैं रहूंँ या ना रहूंँ..
कल कदाचित मैं रहूंँ या ना रहूंँ!
- ©अंशुमान मिश्र
वाह्ह्ह्ह्ह
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद ❤️🙏
हटाएंअत्यन्त सुन्दर भावपूर्ण गीत 🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं संवेदनशील गीत सृजन 💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार मैम ❤️🙏✨
हटाएंउत्कृष्ट शब्दों, भावों एवं बिम्बों से सुसज्जित अद्वितीय गीत की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंअशेष बार धन्यवाद भाई ✨🙏
हटाएंWahhhh beautiful
जवाब देंहटाएंसुंदर 🌸💐
जवाब देंहटाएंअद्भुत अप्रतिम, भावपूर्ण 👏👏👏💐💐💐
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