गज़ल ©दीप्ति सिंह

बह़्र -  मुतदारिक मुसम्मन सालिम

अरकान-फ़ाइलुन/फ़ाईलुन/फ़ाइलुन/फ़ाइलुन 

 वज़्न-    212   212   212  212



 साँवरे जबसे तुमसे मुहब्बत हुई 

ज़िंदगी और भी ख़ूबसूरत हुई


दिल धड़कता है अब तो तेरे नाम से 

ये इबादत भी दिल की जरूरत हुई

 

तेरी आँखों में है ज़िंदगी का नशा 

मंद मुस्कान उसपर क़यामत हुई 


बाँसुरी मेरे कानों में बजती रहे 

दीद हो जाए बस इतनी हसरत हुई  


नाम जपती हूँ जब साँस लेती हूँ मैं 

तुझमें रहना मगन मेरी आदत हुई 


आख़िरी साँस में बस तेरा नाम हो

दिल में हर बार पैदा ये मन्नत हुई  


आज 'दीया' है रौशन तेरे नाम से 

तेरे दम से ही आबाद किस्मत हुई


©दीप्ति सिंह 'दीया'

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