गज़ल ©दीप्ति सिंह
बह़्र - मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अरकान-फ़ाइलुन/फ़ाईलुन/फ़ाइलुन/फ़ाइलुन
वज़्न- 212 212 212 212
साँवरे जबसे तुमसे मुहब्बत हुई
ज़िंदगी और भी ख़ूबसूरत हुई
दिल धड़कता है अब तो तेरे नाम से
ये इबादत भी दिल की जरूरत हुई
तेरी आँखों में है ज़िंदगी का नशा
मंद मुस्कान उसपर क़यामत हुई
बाँसुरी मेरे कानों में बजती रहे
दीद हो जाए बस इतनी हसरत हुई
नाम जपती हूँ जब साँस लेती हूँ मैं
तुझमें रहना मगन मेरी आदत हुई
आख़िरी साँस में बस तेरा नाम हो
दिल में हर बार पैदा ये मन्नत हुई
आज 'दीया' है रौशन तेरे नाम से
तेरे दम से ही आबाद किस्मत हुई
©दीप्ति सिंह 'दीया'
आभार लेखनी 💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल🙏
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुक्रिया आपका गुंजित 😊
हटाएंBahut sundar gazal maam 🙏👌
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