ख़्वाबों के दरख़्त ©रेखा खन्ना
रात ख्वाबों के बीज बोए थे
पलकों तले दरख़्त उग आए थे।।
फूलों के खिलने से पहले ही
सूरज की किरणों ने सारे दख़्त जलाए थे।।
स्वप्न, सत्य के धरातल पर कहीं टिक ना पाए थे
सत्य के पत्थरों ने स्वप्न सारे चिटकाए थे।।
कुछ नुकीले तीर भी जुबां-ए-तरकश से निकल आए थे
शूल, दिल में यूं गड़े कि हम मन ही मार आए थे।।
©रेखा खन्ना
बेहद खूबसूरत एवं भावपूर्ण 💐💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंपलकों तले दरख़्त उग आए थे...वाहहहहह❤️
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा 👌👌
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