कविता ©रिंकी नेगी
हर ओर कोलाहल मचा,
हर ओर चीख-पुकार है ।
वेदना समझे न कोई,
असहाय पर होते अत्याचार है ।
ढूढ़े पथिक सारथी,
मिलती किंतु दुत्कार है ।
सर्वश्रेष्ठ कैसे बने यहाँ
केवल इसी पर करते सभी विचार है ।
अन्याय का है बोल-बाला,
न्याय न जाने छिपा किस द्वार है ।
ज्ञान का अनुचित प्रयोग,
अज्ञानियों को दे रहा शक्ति अपार है ।
रक्त से भी खेल जाये,
ये कैसे विचित्र चित्रकार है ।
सर्वश्रेष्ठ कैसे बने यहाँ
केवल इसी पर करते सभी विचार है ।
बाहृय आडम्बरों से,
परिपूर्ण समाज
अन्याय के विरूद्ध करता नहीं चीत्कार है ।
स्वयं की थाली भरता जाये पर,
किंतु गरीब भूख से ही बेहाल है ।
निर्लज्ज है मानव इतना की अब,
मानवता भी शर्मशार है ।
सर्वश्रेष्ठ कैसे बने यहाँ
केवल इसी पर करते सभी विचार है ।
घुट-घुट कर कट रहा,
मानव जीवन बेहद बेहाल है ।
समाज में अच्छाई को ओढ़े हुए,
ना जाने कितने अपवित्र विचार है ।
-©रिंकी नेगी
Bahut sundar kavita Didi👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका❤️🙏
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका❤️🙏
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण पंक्तियाँ 💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका❤️🙏
हटाएंबहुत भावपूर्ण और सटीक कविता।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद आपका❤️🙏
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण रचना 👌👌👌❤❤❤
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