ग़ज़ल ©रानी श्री

बहर- बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूरफ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल

वज़्न- 122 122 122 12


नज़र जो किसी से.....मिलाते नहीं, 

ख़बर में किसी ओर.....आते नहीं। 


मुखातिब हुए आज जिस ओर हम,

कदम उस तरफ़ फ़िर  बढ़ाते नहीं। 


ज़रा सी वफ़ा सीख लेते.....अगर, 

ख़ता कर नज़र ये......चुराते नहीं। 


समझते मुहब्बत का अंजाम...गर,

वफ़ादार दिल को..... रुलाते नहीं।


नये ज़ख़्म मिलते कहीं जो....हमें,

कहानी पुरानी सुनाते.........नहीं।


खबर कौन देता हमें मौत...... की, 

अगर तुम हमें ये बताते....... नहीं। 


गुज़रती नहीं ज़िंदगी........  दर्द में,

अगर हम किसी से... जताते नहीं।


सफ़र साथ तय जो किये थे कभी,

वही साथ अब क्यों निभाते  नहीं।


जवानी नहीं  ये भटकती....अगर,

जवां दिल किसी से...लगाते नहीं। 


जुदा हो गया जो हमीं से....  यहाँ,

ख़ुदा फ़िर उसी को ..बनाते नहीं।


बताते कि 'रानी' यही... जीस्त है,

कभी रूह को.....आजमाते नहीं।


©रानी श्री

टिप्पणियाँ

  1. वाह-वाह क्या कहने लाजवाब गज़ल 💐💐💐

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  2. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल जिज्जी

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  3. वाह वाह, बेहद उम्दा गज़ल 👏👏👏👏🌺🌺🌺🌺❤❤❤❤

    जवाब देंहटाएं
  4. ज़रा सी वफ़ा सीख लेते.....अगर,
    ख़ता कर नज़र ये......चुराते नहीं।
    वाह!!! बहुत ही उम्‍दा

    जवाब देंहटाएं

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