कविता ©सूर्यम् मिश्र
छंद- विधाता
(कुल मात्रा- 28, 14-14 पर यति, 1ली ,8वीं ,15वीं ,22वीं मात्रा लघु अनिवार्य)
निलय भर भीरुता अनहद,
व्यथित अनुनाद अंतस में।
निराशा पूर्ण अवरोधी,
व्यथा का वास नस-नस में ।।
प्रवर्धन भाग्य का किंचित,
सदा दुर्भाग्य हावी है।
अकिंचित चेतना अभिमत,
प्रखरता रक्त स्रावी है।।
सुनो हे! अग्नि के पोषक,
कहाँ, क्या, कौन हो? सोचो।
विफलता घूर कर देखे,
उठो उसके नयन नोचो।।
करो निश्चय अटल यदि तुम,
रहेगा शक्ति का मेला।
पिपासा शांत कर देगी,
महासंग्राम की बेला।।
पवन के पंख धारण कर,
गगन को भूमि पर लाओ।
शिराओं में भरो विद्युत,
भुवन में गड़गड़ा जाओ।।
मनुज तुम मौन मत बैठो,
दहाड़ो सिंह से बढ़कर।
लगा दो पाँव की रज को,
नियति के वक्ष पर चढ़कर।।
धमकते आ रहे तम को,
उठो पथभ्रष्ट ही कर दो।
कराओ काल नतमस्तक,
"नहीं" को नष्ट ही कर दो।।
समय का चक्र मोड़ो तुम,
न सीधी चाल हो पाए।
हथेली बाँध कर मारो,
धरा पाताल हो जाए।।
©सूर्यम् मिश्र
अत्यंत सुंदर छंदबद्ध कविता
जवाब देंहटाएंJitni tareef ki jaye utni kam🙌🏻 kamaal kiya hai
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट, छंदबद्ध कविता।
जवाब देंहटाएंBahut sunder kavita 👌👌
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