अंतर्मन और लेखन ©गुंजित जैन
अंतर्मन से प्रश्न उठाया, लेखन बिन क्या जीवन हो?
क्या हो हृदय-भाव की सरिता? क्या उर का संवेदन हो?
विचलित मन की शांति-पिपासा, शब्द-सरोवर खोजेगी,
आघातों से आहत आशा, समसि निरंतर खोजेगी।
क्या हो तब सुख की परिभाषा? दुख का कैसे खंडन हो?
अंतर्मन से प्रश्न उठाया, लेखन बिन क्या जीवन हो?
हर्षित पंछी की पीड़ाएँ, बाहर कैसे आएँगी,
मूक गुहारें नव-पल्लव की, सदा मूक रह जाएँगी।
व्यथा विटप की कौन सुनेगा? कैसे बोधक चिंतन हो?
अंतर्मन से प्रश्न उठाया, लेखन बिन क्या जीवन हो?
कविता की सुंदर उपमाएँ, निज अस्तित्व निहारेंगी,
शब्दों की माला पृष्ठों पर, कवि को सदा पुकारेंगी।
कैसे कवि-मन का पृष्ठों पर, कविता से आलिंगन हो?
अंतर्मन से प्रश्न उठाया, लेखन बिन क्या जीवन हो?
©गुंजित जैन
Bahut umda Bhai 👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार भाई जी🙏
हटाएंसुंदर, भावपूर्ण गीत 💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर🙏🙏
हटाएंअत्यंत भावपूर्ण एवं उत्कृष्ट गीत सृजन 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम🙏🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर भावपूर्ण कविता भैया 🙏
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏🙏
हटाएंआभार, लेखनी🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण सृजन 👏👏👏🌺🌺
जवाब देंहटाएंसादर आभार, नमन।
हटाएंबहुत-बहुत सुंदर, सार्थक कविता भाई ❤️❤️
जवाब देंहटाएंसादर आभार, नमन।
हटाएंवाह!! सत्यता का यथार्थ और सार्थक चित्रण।
जवाब देंहटाएंसादर आभार, नमन।
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