दिवस ©लवी द्विवेदी
निष्ठुर भी होते हैं, दारुण होते हैं।
दया, कुशलता, निश दिन ढांढस ढोते हैं।
किन्तु हृदय की असहनीय पीड़ा लेकर,
दिवस विवश एकांत निलय में रोते हैं।
संघर्षों की माला नित दृष्टांत नवल,
नित नूतन क्यारी मृदु युक्त पुष्प कोमल।
किन्तु विलग रस हीन पुष्प उच्छिन्न प्राय,
याम व्याल संग लिपटे ज्यों शीतल संदल।
असमंजस अध्यात्म हृदय के कण कण में,
विह्वल श्वास अरण्य सघन उत्तर प्रण में।
विषधर व्याप्त शीत चंदन उर यमुना यदि,
वार मृत्यु को पाते दंश उरग रण में।
शील हुए निर्मोही भी दिन बहु भ्रामक,
निरख निरख अन्याय, विलग दुविधा कारक।
श्वेत वर्ण के सुख दुख अधम छद्म रण में,
विजय पताका किंतु संग रक्तिम सायक।
ये कैसा पर्याय नियति के आँगन में,
सरगम है यदि, नहीं श्वास क्षमता तन में।
दिन प्रतिदिन ही ज्ञात अपरिचित होते है,
मित्र कुशल दारुण, गुण अवगुण जीवन में।
© लवी द्विवेदी
उत्कृष्ट, भावपूर्ण, मनहर कविता...,
जवाब देंहटाएंअलौकिक शब्द संयोजन.....वाह्ह्ह्ह्ह्ह
Bahut bahut sundar rachna lavi sister 🙏🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट भावपूर्ण कविता सृजन बेटा 👏👏👏🌺🌺🌺❤❤❤❤
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर शब्दों से सुसज्जित उत्तम कविता🙏🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं ओजपूर्ण सृजन 💐💐💐💐
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