गीत-दीपक ©संजीव शुक्ला

 घटा घनघोर है नभ में, बिछा पथ में उजाला है,

प्रतीक्षा में कदाचित एक दीपक जल रहा होगा l


कठिनतम मार्ग कंटक तालिका है तीक्ष्ण शूलों की,

गली सुखमय सुखद प्रत्येक कोमल पर्ण फूलों की l

करूँ विश्वास कैसे पथगमन दुष्कर सरल कैसे,

कहीं कोई पुहुप चुन पुष्प वन में चल रहा होगा l


कठिन संघर्षमय प्रत्येक पल अंगार है जीवन,

परम् शीतल मगन पश्चात कैसे मुग्ध अंतर्मन l

तनिक आभास मन को उष्णता का क्यों नहीं होता,

प्रवाहित प्रेम का झरना कहीं उरतल रहा होगा l


अँधेरा है अमावस की निशा है तारिकाऐं हैँ,

भयानक श्याम घन अंबर भयातुर कोशिकाऐं हैँ l

तिमिर वन में अप्रत्याशित उजाला किस तरह फैला,

लिए खद्योत दृग में स्वप्न कोई पल रहा होगा l

©संजीव शुक्ला

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