गीत-दीपक ©संजीव शुक्ला
घटा घनघोर है नभ में, बिछा पथ में उजाला है,
प्रतीक्षा में कदाचित एक दीपक जल रहा होगा l
कठिनतम मार्ग कंटक तालिका है तीक्ष्ण शूलों की,
गली सुखमय सुखद प्रत्येक कोमल पर्ण फूलों की l
करूँ विश्वास कैसे पथगमन दुष्कर सरल कैसे,
कहीं कोई पुहुप चुन पुष्प वन में चल रहा होगा l
कठिन संघर्षमय प्रत्येक पल अंगार है जीवन,
परम् शीतल मगन पश्चात कैसे मुग्ध अंतर्मन l
तनिक आभास मन को उष्णता का क्यों नहीं होता,
प्रवाहित प्रेम का झरना कहीं उरतल रहा होगा l
अँधेरा है अमावस की निशा है तारिकाऐं हैँ,
भयानक श्याम घन अंबर भयातुर कोशिकाऐं हैँ l
तिमिर वन में अप्रत्याशित उजाला किस तरह फैला,
लिए खद्योत दृग में स्वप्न कोई पल रहा होगा l
©संजीव शुक्ला
आभार लेखनी 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत सरजी🙏 नमन 🙏🙏
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