प्यार की बदरा ©दीप्ति सिंह

 तेरे प्यार की बदरा बरसे ज़रा 

मन भीगे थोड़ा... तरसे ज़रा

जज़्बातों की बिजुरी चमके ज़रा 

कभी ज्यादा और कभी....थम के ज़रा 


आज मौसम की नीयत बेईमान है

दिल के अंदर ये कैसा तूफान है 

यूँ मुहब्बत की ख़ुशबू महके ज़रा 

मन झूमे और तन बहके ज़रा

  

अब के सावन यूँ ही बीते ना

कोई कोना मन का रीते ना

आज भीगे तो अरमाँ निकले ज़रा 

तेरी बाहों में आके पिघले ज़रा 


तेरी उल्फ़त में है डूब जाना मुझे 

चाहे दुनियाँ बोले दीवाना मुझे 

तेरी चाहत की बारिश कर दे ज़रा 

मेरी ख़्वाहिश का दामन भर दे ज़रा 


©दीप्ति सिंह "दीया"

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'