गीत बुधनी ©नवल किशोर सिंह

 जलती-भुनती बुधनी मन में, और तवे पर रोटी।

आँगन में मुनिया चिल्लाती, मैया कर दो चोटी।


ढली रात तो आया कलुआ, बोतल चार चढ़ाकर।

माँग रहा वह दाल-बघाड़ा, थाली को टरकाकर।

मान-मनौवल के चक्कर में, बनती बुधनी बोटी।


ऐसे ही वह रात गुजारी, और उठी भिनसारे।

गौशाले में गाय रँभाती, अम्मा उसे पुकारे।

फूट फफोले निकले दिल के, जैसे हो पनगोटी।


भावों के नवनीत बिना ही, निशिदिन दही बिलोना।

छलछल मट्ठा बटलोही में, नीचे पड़ा सिरोना।

नयनों के दो खाली दोने, बूँदें मोटी-मोटी।


-©नवल किशोर सिंह

टिप्पणियाँ

  1. हार्दिक आभार तुषार
    ~नवल

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  2. अत्यंत उत्कृष्ट एवं मर्मस्पर्शी गीत सृजन 💐💐💐🙏🏼

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  3. अत्यंत उत्कृष्ट गीत सृजन सर ✨💫👏🙏

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  4. अत्यंत अद्भुत गीत सर जी।
    नमन 🙏

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  5. उत्कृष्ट, मार्मिक गीत सृजन🙏

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  6. हृदय तक पहुँचती... टीस उठाती... सोचने पर विवश करती... नभन सर जी...💐💐💐🙏🙏

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  7. अत्यंत हृदयस्पर्शी भावपूर्ण रचना सर जी 🙏🙏🙏🌺🌺🌺

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