ग़ज़ल ©अंशुमान मिश्र
बेईमानों से शराफत कर रहे हैं!
हम यहां खुद की वकालत कर रहे हैं!
झूठ की बैठी अदालत में खड़े हम,
सच बताने की हिमाकत कर रहे हैं!
वो ठिठुर ठंडी हवाओं से रहे हैं,
आंधियों से हम बगावत कर रहे हैं!
एक पागल वो, जो पागल दिख रहा है,
एक पागल हम.... मुहब्बत कर रहे हैं!
वो हमारी जान लेने पर आमादा,
हम कि दीदार-ए-नज़ाकत कर रहे हैं,
आज लाखों जानें फिर कुर्बान होंगी,
आज सज कर वो कायमत कर रहे हैं!
-©अंशुमान मिश्र
बेहतरीन ग़ज़ल🙏🙏👏👏
जवाब देंहटाएंशुक्रिया भाई ❤️
हटाएंवाह बेहद खूबसूरत गज़ल 👌👌👌🌺🌺
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मैम ❤️🙏
हटाएंAshutosh. Gapta
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मैम❤️🙏🙏
हटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार भाई जी❤️🙏
हटाएंखूबसूरत ग़ज़ल भ्राता श्री ✨👏🙏
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