मैं तेरी कौन, पिया ? ©रेखा खन्ना

 " देखकर भी क्यूंँ तुम मुझे देखते ही नहीं 

  यारा ऐसी बेरूखी सही तो नहीं....... "


सुनो!


ये गाना तुमने सुना है कभी ..... ना ना ऐसे शुरू नहीं  होता है , ये तो गाने के बीच की एक पंक्ति है जो आज जुबां पर चढ़ गई है और मैं इसे बस गुनगुना रही हूंँ बार बार। पता नहीं क्या हैं इस पंक्ति में जो मुझे खींच रहा है ठीक वैसे ही जैसे तुम्हारा एहसास खींचता है मुझे।


बस यूं ही इसे गुनगुनाते हुए सोच रही थी  .... कि


देखकर भी क्यूँ तुम मुझे देखते ही नहीं


सोचती हूँ अक्सर तेरी जिंदगी में मैं हूंँ भी कि नहीं 

दो पल की भी तो बात कभी होती ही नहीं

मेरे दिल की आवाज़ भी तुझ तक पहुंँचती ही नहीं

दिन रात का इंतज़ार कभी खत्म होता ही नहीं

मेरी तमन्नाओं को कभी तेरा साथ मिलता क्यूँ नहीं।


सोचती हूंँ अक्सर तेरे दिल में मैं हूँ भी कि नहीं .........


मेरी राहों में क्यूँ तेरा घर पड़ता ही नहीं

तेरे घर की दीवारें भी तो मुझे पहचानती ही नहीं

क्यूँ कदम मेरे तेरी राह हर पल ढूँढते ही रहे

क्यूँ तेरे कदमों के निशान भी मुझे देख मिटते ही गए

क्यूँ मेरे दिल के तार तेरे दिल को छेड़ते ही नहीं।


सोचती हूंँ अक्सर तेरे दिल में मैं हूँ भी कि नहीं .........


क्यूँ तुझे मेरी याद कभी सताती ही नहीं

क्यूँ तेरे दिल में राग मुझे देख बजते ही नहीं

क्यूँ तेरी रातें, मेरी रातों की तरह जागती ही नहीं

क्यूँ चांँद भी तेरा पता मुझे बताता ही नहीं

क्यूँ तारों से सजे आसमां तले मेरे साथ वक्त बिताते नहीं।


सोचती हूंँ अक्सर तेरे दिल में मैं हूँ भी कि नहीं .........


क्या हैं तुझमें जो मुझे तेरी ओर है खींचता

मेरी ओर तुम्हें कोई क्यूँ धकेलता ही नहीं

मोहब्बत की मेरी क्यूंँ कशिश तुझे सताती ही नहीं

दो घड़ियांँ भी क्यूँ संग तेरे गुजरती ही नहीं

क्यूँ तेरे शहर से मेरे शहर की दूरियांँ सिमटती ही नहीं।


सोचती हूंँ अक्सर तेरे दिल में मैं हूँ भी कि नहीं ........


किस बात की है नाराज़गी जो मिटती ही नहीं

क्यूँ दिल की बात मेरी तुझे समझ आती ही नहीं

दिन खाली-खाली सा और रात बेरंग है गुजरती

क्यूंँ तेरी बाहें मुझे चैन की नींद सुलाती ही नहीं

क्यूँ तड़प कोई तेरे दिल में जागती ही नहीं

क्यूँ तड़प में इतना दम नही मैं तेरी याद में मरती भी नहीं।


सोचती हूंँ अक्सर तेरे दिल में मैं हूँ भी कि नहीं ........


 ©रेखा खन्ना

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कविता- ग़म तेरे आने का ©सम्प्रीति

ग़ज़ल ©अंजलि

ग़ज़ल ©गुंजित जैन

पञ्च-चामर छंद- श्रमिक ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'