कविता-निःस्वयुग ©संजीव शुक्ला

 प्रमाणित होंगे कथन समस्त, 

चयन होगा ज़ब कर्म प्रधान l

परीक्षण पर उत्तरदायित्व, 

निःस्व युग का होगा अवसान l


प्रज्वलित होंगे प्रज्ञा दीप, 

हृदय उपजेगा अंतर्ज्ञान l

जगेगा तंद्रा से चैतन्य, 

भ्रमित पथ का तब होगा भान l


सकल जन होंगे भिज्ञ सचेत,

न मिथ्या जन प्रवाद स्थान  l

परीक्षित होंगे सत्य असत्य,

छद्म छ्ल की होगी पहचान l


कीर्ति गाथा विरुदावलि गीत,

निरर्थक जननायक यशगान l

कदाचित हो चारण युग अंत, 

योग्यता,गुण का हो सम्मान l


स्वयंभू देव धर्म ध्वज दंड, 

धार कर संतों का परिधान l

कुटिलता धर्म पंथ की ओट, 

रचे नित नूतन स्वार्थ विधान l


सरल जन हृदय पूर्ण अधिकार,

सहज कर लेते धूर्त महान l

दिखाकर उज्ज्वल आगत स्वप्न, 

छले जाते नित श्रमिक किसान l


रचे जाते हैँ मायाजाल, 

भ्रमित करते जनगण का ध्यान l

प्रकट कर संकट छद्म समक्ष, 

स्वार्थ मूलक विधि, छद्म निदान l


मूल में है सत्ता व्यापार, 

प्रकट में पूजा जप तप ज्ञान l

राष्ट्र हित चोला, धर्म, सजाति, 

बने हैँ सत्ता के वरदान l

©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'

टिप्पणियाँ

  1. रचे जाते हैं मायाजाल,
    भ्रमित करते जन गण का ध्यान।
    अत्यंत उत्कृष्ट एवं सार्थक सृजन 🙏🙏🙏💐💐💐

    जवाब देंहटाएं
  2. अतिसुन्दर, उत्कृष्ट सृजन🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  3. अत्यंत उत्कृष्ट एवं ओजपूर्ण कविता💐💐💐🙏🏼

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्कृष्टता की पराकाष्ठा है यह कविता सर जी...

    सत्ता के लोभी जन नायकों को दर्पण दिखाती हुई करारी कविता, अप्रतिम शब्द समन्वय..... नमन नमन नमन है सर... 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

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