ग़ज़ल ©गुंजित जैन
आशिक़ी की वो इंतिहा दो मुझे,
इश्क़ के बोझ में दबा दो मुझे।
ख़्वाब का आशियाँ हैं ये पलकें,
दरमियाँ इनके आसरा दो मुझे।
जिसपे लिक्खी ख़ुशी की क़ीमत हो,
टुकड़ा उस इश्तिहार का दो मुझे।
इश्क़ करने की मैंने चाहत की,
जब ख़ता मेरी है, सज़ा दो मुझे।
आज कल दर-ब-दर भटकता हूँ,
आपके दिल का रास्ता दो मुझे।
कब तलक गुफ़्तगू ज़ुबाँ से करूँ,
अब निग़ाहों का भी पता दो मुझे।
छोड़कर मुझको जा रहे हैं सब,
आप कब जाओगे, बता दो मुझे।
हूँ परिंदा मैं आसमाँ का अगर,
आसमाँ तो खुला-खुला दो मुझे।
इश्क़ तो कोई खेल है 'गुंजित',
जीतना है? चलो हरा दो मुझे।
©गुंजित जैन
बेहद खूबसूरत बेहद रूमानी गज़ल 💐💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार मैम🙏
हटाएंबेहद खूबसूरत गज़ल 💛👏❤
जवाब देंहटाएंसादर आभार भाई जी🙏
हटाएंबेहतरीन गजल
जवाब देंहटाएंबधाई
वाह, बेहद उम्दा ग़ज़ल हुई भाई ❤️❤️✨🌷
जवाब देंहटाएंसादर आभार भाईजी🙏
हटाएंआह्हा तुम्हारी बेहतरीन रचनाओं में से एक👏
जवाब देंहटाएंबेहद शुक्रिया दीदी🤗
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल भाई👌👌
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत आभार🙏
हटाएंPyaar me duba hua aashiq lekhak
जवाब देंहटाएं😅🙏
हटाएंBahut sundar gazal ... Beautiful 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत आभार🙏
हटाएंBeautiful
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
हटाएंबहुत सुंदर 💐💐
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
हटाएंवाह वाह गुंजित
जवाब देंहटाएंसादर आभार🙏
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