किरदार ©नवल किशोर सिंह
हार जो पाया नहीं तलवार से।
जीत उसको ले गए तब प्यार से।
प्रेम-पल्लव हीन मुंडित पेड़ पर,
पुष्प भी विकसित हुआ मनुहार से।
देखकर वीभत्स आँगन युद्ध का,
बुद्ध विचलित हो उठे संसार से।
वेग जब देती तरंगित ऊर्मियाँ,
पार पाती नाव भी मँझधार से।
लूट का चरखा भला क्यों टूटता,
पूछते वंचक वजह सरकार से।
प्रात की किरणें ठहरती शाम को,
मोल लेकिन पूछतीं अखबार से।
झट मुखौटे को बदलना भी कठिन,
तंग है खुद आदमी किरदार से।
-©नवल किशोर सिंह
हार्दिक आभार तुषार जी💐💐
जवाब देंहटाएंसुंदर, सार्थक रचना सर l🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्कृष्ट एवं प्रेरणादायक 💐💐💐💐🙏🏼🙏🏼
जवाब देंहटाएंअत्युत्तम रचना सर🙏
जवाब देंहटाएंअद्भुत अदुत्ये रचना सरजी🙏🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत अद्भुत रचना गुरुवर,...👏🙏
जवाब देंहटाएंसुंदर, भावपूर्ण गीतिका सृजन सर जी.... नमन... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺😊
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