फिर कहो परिणाम क्या हो? ©अंशुमान मिश्र
चेतना जब मर रही हो,
कष्ट की आकर रही हो,
रुग्ण उर की हर शिरा में,
वेदना घर कर रही हो!
नित नियति की मार सहकर,
आस जब बस शांत रह कर,
फिर नवल सा स्वप्न बुनती,
‘एक अंतिम बार’ कहकर..
इस व्यथा इस वेदना से,
फिर कहो विश्राम क्या हो?
फिर कहो परिणाम क्या हो?
फिर कहो परिणाम क्या हो?
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एक तारा टूटता है,
पर्ण तरु से छूटता है,
किन्तु नभ फिर भी चमकता,
वृक्ष भी कब रूठता है?
किन्तु तारा मर गया ना,
पर्ण का भी घर गया ना,
वृक्ष, नभ, दोनों कुशल हैं,
एक जीवन, पर गया ना,
इस छिपी करुणा-कथा का,
फिर कहो, आयाम क्या हो?
फिर कहो परिणाम क्या हो?
फिर कहो परिणाम क्या हो?
- ©अंशुमान मिश्र
अत्यंत उत्कृष्ट भावपूर्ण अद्भुत छंदबद्ध कविता दद्दा नमन 🙏
जवाब देंहटाएंअत्यंत आभार दीदी❤️🙏🙏
हटाएंसुंदर रचना 💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सर ❤️🙏
हटाएंKitne bade ho gaye re tum mere pas shabd hi nhi h sach me .Agar kahu ki bahut achha likha h .to ye bhi kam h 😘❤️❤️
जवाब देंहटाएंजी बहुत बहुत धन्यवाद, अशेष बार आभार ❤️🙏
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं भावपूर्ण सृजन 💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंअशेष बार आभार मैम ❤️🙏
हटाएंभावपूर्ण ❤️❤️
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मैम ❤️🙏
हटाएंअत्यंत उत्कृष्ट भावपूर्ण सृजन 👏👏👏💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद मैम ❤️🙏
हटाएंबाहतरीन bhai ❤👌👌
जवाब देंहटाएंनमस्कार अंशुमन जी,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना! मन प्रफुल्लित हो गया पढ़कर। आप हिंदी साहित्य के सही मायने में साधक हैं।
💐💐💐
❤️❤️
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर मनहर सार्थक सृजन भैया👌💐💐💐💐💐💐
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