ग़ज़ल ©संजीव शुक्ला

 गलतियाँ कोई करे हम ही खतावार रहे l

हम कहानी में फ़क़त नाम के किरदार रहे l


उनके हालात से वाकिफ नहीं है बस हम ही..

जिनकी खबरों से भरे मुल्क के अख़बार रहे l


वो खुदा है कोई पत्थर है या कोई बुत है....

उम्र भर जिस की इनायत का इंतज़ार रहे l


कीमती वक़्त कभी ज़ब हमें दिया अपना....

या वो मशरूफ रहे या कभी बीमार रहे l


बेरुखी ज़िल्लतें इल्ज़ाम हमारे सर हैँ...

औऱ हम सिर्फ तबस्सुम के तलबगार रहे l


यूँ मुहब्बत में खसारों का कारोबार हुआ..

फुरकतें हैँ नगद ख़ुशी के पल उधार रहे l


गैर के वास्ते हमसे खफ़ा रहे हरदम....

इस तरह 'रिक्त' हमारे वो वफ़ादार रहे l

©संजीव शुक्ला

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