माफी अजन्में बच्चे से ©रेखा खन्ना
कुछ धोखे जीने की वजह ही खत्म कर देते हैं। तब अनकही इच्छाओं का वजूद भी खत्म हो जाता है। वो इच्छाएंँ पूर्ण होने के लिए अगले जन्म के इंतजार की सूली पर चढ़ा दी जाती है।
बहुत कुछ मर जाता है भीतर ही भीतर और साथ में मर जाते हैं वो सब भी जो जुड़े होते हैं उस एक इंसान से।
मोहब्बत जब छोड़ कर चली जाती है तब मोहब्बत सिर्फ दुःख, तन्हाई, आँसूओं का तोहफा ही नहीं देती है और भी बहुत कुछ देती है। देखो ना तुम्हारी मोहब्बत ने मुझे क्या दिया, वो सपना जो मैं दिन रात देखा करती थी उसे पूरा करने के लिए अगले जन्म तक का इंतज़ार दिया। अक्सर तुम्हारे संग जिंदगी गुजारने का ख्वाब देखते देखते, रोज़ तुम्हारी मोहब्बत में डूबते हुए कुछ ख्वाब सजाने लग गई थी आंँखें और उन अनगिनत ख्वाबों में एक ख्वाब था माँ बनना।
अपनी मोहब्बत की निशानी को अपने अंदर महसूस करना। अपने अंदर उसकी हलचल को और उसे बड़ा होते हुए महसूस करना। जब वो इस दुनिया में पहला कदम रखे तो उसे देख कर खुशी में झूम उठना, पहली बार उस नन्ही सी जान को बांँहों में भर कर कैसा महसूस होता है वो महसूस करना। देखो ना कितना कुछ था जीने के लिए। कितने सपने आंँखों में साँँसें ले रहे थे, उन सब सपनोँ को धोखे की एक तीली से जला कर खाक कर दिया तुमने।
तुम्हारे धोखे के बाद मैं कभी किसी पर विश्वास ही नहीं कर पाई, सारी उम्र गुजार दी अकेले पर पता है अब तुम्हारा मुझे यूं छोड़कर चले जाना दुःख नहीं देता है दुःख सिर्फ इस बात का होता है माँ बनने का सामर्थ्य रखते हुए भी इस जन्म में माँ नहीं बन सकी, दुःख होता है कि काश मोहब्बत ही ना की होती कभी। कम से कम एक नन्ही सी जान को अपने अंदर महसूस तो कर सकती थी।
धीरे धीरे माँ बनने की इच्छा भी दम तोड़ने लगी है क्योंकि अकेलेपन की आदत दिल में घर चुकी है। अब लगता है कि शायद इस अकेलेपन को किसी के संग भी बांटना मुश्किल है, हांँ सही सुना अब कोई इच्छा जीवित नहीं है दिल में। तुमने हर सपनें, हर इच्छा को एक तीली से जला कर राख दिया है।
उस सुलगती हुई राख में माँ बनने की इच्छा जीवित थी पर जैसे जैसे लपटें शांत होती गई वैसे वैसे ही सब कुछ सूखी राख में तब्दील होता गया।
वो राख जाने कहांँ हवा अपने संग बहा कर ले गई, अब मेरे पास कुछ भी नहीं, ना मोहब्बत, ना जीने की चाहत, ना खुश होने की वजह और ना ही माँ बन अपनी मोहब्बत को महसूस करने का सपना। इन सबको जाने कब का मैंने दफ़न कर दिया है।
अब बस मैं हूँ और मेरा वीरान, बर्फ की भांँति ठंडा और पत्थर हुआ पड़ा दिल, जो अब पिघलता ही नहीं है। जो अब किसी पर विश्वास नहीं करता है, जो अब मोहब्बत को भी नफरतों से तौलता है। जो अब मृत हो गया है ठीक उसी अजन्में बच्चे की तरह जो कभी जन्म नहीं लेगा, कम से कम मेरे इस जन्म में कभी जन्म नहीं लेगा। मुझे इंतज़ार है अगले जन्म का जब मैं अपने अंदर अपने बच्चे को साँसे लेता हुआ महसूस करूँगी, उसे पहली बार गोद में उठा कर चूम सकूँगी और अपनी छाती से लगा कर उसकी धड़कनें सुन सकूँगी।
ऐ! मेरे अजन्में बच्चे, हो सके तो मुझे माफ़ करना क्योंकि मैंने अपनी मोहब्बत के हाथों तुम्हें भी जन्म लेने को तरसा दिया। तुम्हें भी मैंने अपने अगले जन्म के इंतज़ार की सूली पर टाँग दिया।
ऐ! मेरी नन्ही सी जान, हम मिलेंगे, फिर किसी अगले जन्म में जहांँ तुम्हें मेरी कोख से जन्म लेने से कोई भी नहीं रोक पाएगा। ओ! नन्ही सी जान दुआ दे मुझे कि फिर किसी जन्म में मुझे किसी से भी मोहब्बत ना हो, क्योंकि मैं नहीं चाहती कि एक बार फिर धोखे की सूली पर चढ़ कर मैं तुम्हें गवां दूं।
हम दोनों को एक दूसरे का इंतज़ार है और यकीन रखो हम एक दिन मिलेंगे जरूर, माँ और बच्चा बन कर।
तुम्हारी अभागी माँ।
©रेखा खन्ना
हृदय स्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंअत्यंत संवेदनशील एवं मार्मिक 💐💐💐💐🙏🏼
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबेहद मार्मिक सृजन
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबेहद मार्मिक सृजन
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंबेहद मार्मिक रचना👌👌
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंअत्यंत हृदयस्पर्शी रचना 🙏🙏💐💐
जवाब देंहटाएंShukriya
हटाएंहृदय स्पर्शी 🌸🌸
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ रेखा जी। आँखों से नहीं हर शब्द दिल से पढ़ती गई। 🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी रचना🙏🙏 नमन
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