अनायास ©लवी द्विवेदी
निशि अँधियारी घनघोर निखर जब आती है।
क्यों भावों की धारा प्रगाढ़ हो जाती है।
कुछ क्षणिक विषैले पोखर सम कस्तूरी दृग।
हो व्याकुल विह्वल शांति पिपासा को हरते।
कुछ गहन विशाल प्रणय वाले अल्हड़ पंछी,
नभ छूकर भी रुग्णित तृष्णा के घट भरते।
कुछ तृष्णा मिटी, मिला पर ना अह्लादित मन,
उस पल अभिलाषा अनायास मुस्काती है।
क्यों भावों की धारा प्रगाढ़ हो जाती है।
विकराल अविस्मरणीय निरर्थक आतुर मन,
घनघोर प्रशंसा का आदी निष्ठुर होता।
क्षण मिले हुए शब्दों से खुश, पर एक विकल,
वह कवि ही है या कवि होकर भी उर होता।
इस क्षणिक अवधि की रसना का रुचिकार स्वयं,
हो वृद्ध, विदारक श्वास पिपासा गाती है।
क्यों भावों की धारा प्रगाढ़ हो जाती है।
सुंदर आनन अत्यंत कटीले कुटिल भाव,
है प्रेम किंतु भयभीत अधर की कटुता है।
कुछ क्षणिक विषादी औसत वाला विह्वल मन,
क्षण रूठी आशा है या अविरल सविता है।
कलियों की शोभा शीघ्र एक निश्चित पल में,
करके प्रसन्न हर आनन को मुरझाती है।
क्यों भावों की धारा प्रगाढ़ हो जाती है।
©लवी द्विवेदी
सुंदर रचना 💐
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन 👌👌👌💐💐💐
जवाब देंहटाएंअत्यंत सुंदर गीत🙏🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत 👌👌
जवाब देंहटाएंवाह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह..... मनहर, भावपूर्ण गीत...... बधाई...... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
जवाब देंहटाएंअति सुंदर एवं मनमोहक गीत सृजन 💐💐💐💐😍
जवाब देंहटाएंप्रणम्य रचना 👏🙏
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