गीत ©नवल किशोर सिंह

 मेरे हिस्से हे सखी, मास मधुर कब आया?

 

कोयल कूके बाग में, आँगन बौर नवेली।

बालम बतरस के बिना, सूनी पड़ी हवेली।

दीदा फाड़े कोठरी, नजर गड़ाये कोना।

खाट-पाट उच्चाट-सी, बेकल मन से सोना।

 

दूर सरक तकिया निठुर, बहुत मुझे तरसाया।

 

गुमसुम बैठी देहरी, ताखे ढिबरी पीली।

अंगीठी की आँच में, सुलगे लकड़ी गीली।

एक भगोना भाव का, और उबलता पानी।

फदके चावल प्रीति का, बहे झाग बेमानी।

 

धू-धू जलती आग से, अदहन को खौलाया।

 

पोंछा पोतन मार के, चौके को चमकाते।

राखों का अंबार है, देख कहाँ पर पाते।

राख बनी लकड़ी बुझी, या चूल्हे की ज्वाला। 

ऊहापोह की जिंदगी, मकड़ी बुनती जाला।

 

उन जालों के बीच में, मन मेरा अकुलाया।

 

रूप राशि निष्काम है, पीर हृदय की सोचे।

बैठ अकेली जोगनी, काली अलकें नोचे।

अलकों के जंजाल से, दूर भँवर वनवासी।

कली-कामिनी ताकती, वन में बन उपहासी।

 

किस कमली की क्रोड में, भँवरा है बिलमाया।

मेरे हिस्से हे सखी, मास मधुर कब आया?

 

-©नवल किशोर सिंह

टिप्पणियाँ

  1. सुंदर बिम्ब से सजा सुंदर गीत

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  2. अत्यंत अद्भुत विरह गीत🙏

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  3. आप सभी परिजनों का हार्दिक आभार🙏

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  4. अत्यंत उत्कृष्ट एवं मर्मस्पर्शी विरह गीत 💐💐💐💐🙏🏼

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  5. बहुत सुंदर भावपूर्ण हृदयस्पर्शी विरह गीत 👌👌👌💐💐💐💐🙏🙏

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