कहानी-पूजा के फूल ©संजीव शुक्ला

                             हरा भरा खुशहाल छोटा सा गाँव ..ऊँचे ऊँचे पेड़ों के बीच बने खपरैल  के छोटे छोटे घर ..गाय के गोबर से लीपे गए बड़े-बड़े आँगन .उनमे खेलते-कूदते हँसते खिलखिलाते किलकारियां मारते भागते दौड़ते अधनंगे बच्चे ..दालान में रस्सी की खाट डालके बैठे बीड़ी का धुँआ उड़ाते आपस में गप्प करते कुछ बुज़ुर्ग ..घूँघट  निकाल के आपस में हंसी मज़ाक करतीं अपने रोज़ के काम में व्यस्त महिलाएं ..कच्चे रास्ते  पर थोड़ी और आगे चलकर ठीक गाँव के बीचो बीच .बड़ी विशाल  पक्की हवेली ..गाँव के सभी लोग हवेली को बखरी कह्ते हैं ..बखरी में रहते हैं पुराने ज़मीदार.. बड़े बब्बू और नन्हे बब्बू ..के नाम से गाँव के लोग इन्हे जानते हैं बखरी के सभी सदस्यों के प्रति सभी गाँव वालों के मन में बहुत आदर है ..आज भी आपस के छोटे मोटे विवाद बखरी पहुंच कर निपट जाते हैं ..बड़े बब्बू लगातार कई सालों से क्षेत्र के विधायक हैं .अधिकतर शहर में रहते हैं गाँव में कभी कभार आना होता है ..नन्हे बब्बू कुश्ती कसरत और करिंदों के साथ घूमने फिरने में व्यस्त ..कभी कभी नन्हे बब्बू खुली जीप में अपने लठैत कारिंदों के साथ गाँव की मुख्य सड़क पर निकलते हैं .तो सड़क सूनी हो जाती है .महिलाएं पूरा घूँघट निकालकर दरवाजों की ओट में छुप जाती हैं .बुज़ुर्ग जल्दी जल्दी खाट छोड़कर कोने में सर झुकाकर दुबक जाते हैं ..बच्चों को डांट कर घरों के भीतर बुला लिया जाता है ..बखरी का बाकी का पूरा परिवार शहर में रहता है .बखरी से थोड़ी ही दूर चलकर दक्षिण की और मुख्य सड़क के किनारे राधा कृष्ण का भव्य विशाल मंदिर है ..मंदिर में पूजा के लिए बखरी की और से पुजारी जी नियुक्त हैं जो मंदिर प्रांगण में ही बने छोटे से २ कमरे के आवास में अपनी बेटी सीता के साथ रहते हैं ..गाँव के सभी लोगों के मन में मंदिर और पुजारी जी के प्रति बहुत आदर और श्रद्धा है ..सीता पूजा में सहयोग और भोजन व्यवस्था करती है ..सांझ की आरती के पश्चात सीता की मधुर मनमोहक आवाज में कान्हा जी के  भजन का आनंद लेने गाँव के सभी लोग प्रतिदिन मंदिर अवश्य आते हैं ...

                    विशाल मंदिर के प्रांगण में चारों और विभिन्न प्रकार के सुंदर फूलों के छोटे बड़े दुर्लभ पौधे लगे हैं ..देखभाल के लिए माली काका आते हैं प्रतिदिन सुबह शाम .....मंदिर प्रांगण के बीच एक विशाल सफ़ेद सुंदर सुगंधित फूलों से लदा एक बड़ा सा पेड़ है .माली काका इसे असगंध के नाम से उसकी विशेषता के विषय में ..हर आने वाले दर्शनार्थी को जब परिचित करवाते हैं ...तो उनकी आँखों में कुछ वैसी ही चमक होती है जैसी किसी पिता की आँखों में अपने योग्य पुत्र के गुणों का बखान करते समय दिखाई पड़ती है .................................            कुछ इसी प्रकार  का दृश्य प्रतिदिन ..रहता है इस छोटे से मध्यम वर्गी गाँव का .............                                                              आज सुबह से ही गाँव में चर्चा  है ..शहर से बड़ी बहू और उनका बेटा जो विदेश में रहकर डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहा है गाँव आने वाले हैं.. .लगभग हर घर में बड़ी बहू की अच्छाइयां उनका सबसे प्यार से बात करना .यही चर्चा का विषय है  ....गाँव की सभी महिलाएं बड़ी बहू जी से मिलने को उनसे बात करने को उत्साहित हैं ..बुजुर्गों की भी चर्चा का विषय आज बखरी , बड़ी बहू जी और उनका बेटा ही है .....               शाम होने लगी है .गाँव की शाम का धुंधलका सुनहली धुंध .. दिन भर चर  के घर वापस लौटती हुई धूल उड़ाती .गायों के झुण्ड.बैलों के  गले में बंधी घंटियों की मोहक आवाज़ें ....

       तभी कुछ बच्चों ने आकर गाँव के प्रमुख प्रवेश मार्ग की और इशारा कर के सफेद रंग की बड़ी विदेशी कार की तरफ इशारा कर के बताया कि बहू जी गाँव पहुंच गयी हैं ..महिलाएं घरों की दालान में खड़ी होकर बहू जी की और उनके बेटे की  झलक देखने का प्रयास करने लगीं कुछ बच्चे बखरी के आस पास खड़े होकर देखने की कोशिश करने लगे ................. ..सफेद कार हवेली के विशाल प्रवेश द्वार से सरकती हुई धीरे धीरे अंदर चली गयी ..

   बड़ी बहू जी हवेली में पहुंच कर परिवार जनों से मिलने बात करने में व्यस्त हो गयीं.. उनका 21 साल का बेटा अभिमन्यु  इधर उधर घूमकर हवेली का जायज़ा ले के जल्दी ही बोर हो गया माँ को खोजते हुए अंदर पहुंचा तो बड़ी बहू जी सर पे पल्ला डाले बीमार दादी के पास बेठी बड़ी मालकिन से बातचीत में व्यस्त दिखी .वह भी थोड़ी देर दादी और माँ के साथ अनमना  बैठा रहा ..फिर माँ की और शिकायत के भाव लिए देखा  .उसका मन बिलकुल भी नही था गाँव आने का लेकिन माँ की ज़िद थी इसलिए आना पड़ा ..माँ से वादा लेकर की सिर्फ दो दिन रुकेंगे तीसरे दिन वापस लौट आएंगे ..बड़ी बहू जी बेटे की मनः स्थिति से बखूबी परिचित थीं ..इशारे से आँखे दिखाती हुई ..बोलीं .."अभी तुम मंदिर क्यों नहीं हो आते" ..मैं तो  कल सुबह की पूजा में जा पाउंगी  ....अभिमन्यु अपने मोबाइल की स्क्रीन पे उंगलियां  चलाते हुए माँ की और असहमत नज़र से देखने लगा लेकिन माँ फिर दादी और भोजन बनाने वाली विमला काकी से बातों में व्यस्त हो गयी थी ..आखिर अभिमन्यु ने भी यहां बोर होने से अच्छा मंदिर हो के आना उचित समझा..."ठीक है माँ मैं मंदिर हो के आता हूँ "  ..बड़ी बहू जी ने सहमति में सर हिलाया और फिर विमला काकी को  रात्रि के भोजन संबंधित निर्देश देने में व्यस्त हो गयीं ..अभिमन्यु को माँ का उसे छोड़कर दादी और विमला काकी से बात करना झुंझलाहट पैदा कर रहा था ..आखिर वह उठकर  दादी के कक्ष से बाहर आ गया ...बाहर छोटू विमला काकी का बेटा जो की बखरी में ही छोटे मोटे काम करता रहता था लगभग अभिमन्यु की उम्र का ..दिखा .अभिमन्यु ने उसे पास बुलाया .."कैसा है छोटू "..... "मस्त भैया आप तो पहले से बहुत लम्बे हो गए हो" हँसता हुआ छोटू बोला ...चल मंदिर हो के आते हैं ..ठीक है भैया चलिए आरती का समय हो गया है  ..अभिमन्यु ने छोटू की बातों पे ध्यान नही दिया और दोनों बखरी के मुख्य द्वार से निकल कर  टहलते हुए मंदिर की तरफ चल पड़े .  .....बखरी में सिर्फ  माता जी हैं  जिन्हे सब बड़ी मालकिन बुलाते हैं आज कल अश्वस्थ हैं .नन्हे बब्बू अविवाहित हैं किन्तु उनका लगाव परिवार के सभी सदस्यों से बड़े बब्बू से कहीं ज्यादा है ........           ..आज नन्हे बब्बू बखरी में नही हैं शहर गए हैं किसी काम से नही तो अभिमन्यु की बहुत अच्छी बनती है छोटे दादा जी के साथ ..बस उसे उनकी एक बात पसंद नहीं आती ..और वो है छोटे दादा जी का भारी भरकम हाथ बार बार अभिमन्यु के काँधे पर ठोक कर बात करना ... मंदिर पहुंच कर अभिमन्यु ने देखा आरती हो रही थी ..वैसे तो बचपन से ही जब भी अभिमन्यु गांव आता  मंदिर आना आरती पूजा में शामिल होना उसकी दिनचर्या का हिस्सा रहता था .कान्हा जी उनके पूरे  परिवार के इष्ट हैं और  माँ के  कान्हा जी के प्रति अत्यधिक श्रद्धा भाव के कारण बचपन से ही उसका झुकाव कान्हा जी के प्रति बन चूका था .माँ से  बचपन में सुनी कान्हा जी की महिमा कृपा की अनेकों कथाओं का अभिमन्यु के  कोमल मन पर गहरा प्रभाव था ...हमेशा पाश्चात्य सभ्यता मूलक शिक्षा संस्थानों एवं उच्च शिक्षा यूरोप में प्राप्त करते हुए भी अभिमन्यु का व्यक्तित्व संस्कार एवं धर्म को  मानने वाला था .इसका सबसे बड़ा कारण माँ के दिए संस्कार एवं परिवार का धार्मिक सांस्कारिक वातावरण था ...चुपचाप अभिमन्यु और छोटू लोगों के पीछे जा के खड़े हो के आरती सम्पन्न होने की प्रतीक्षा करने लगे सभी लोगों का ध्यान आरती में था .. .आरती समाप्त हुई .पुजारी जी की दृष्टि जैसे ही अभिमन्यु पर पड़ी उन्होंने उसे इशारे से पास बुलाया ..तब तक और लोगों की नज़र भी अभिमन्यु पर पड चुकी थी .सबने रास्ता दिया अभिमन्यु राधा कृष्ण की मूर्ति को प्रणाम कर पुजारी जी को नमन कर उन्ही के समीप बिछी  चटाई पर बैठ गया ..आरती के पश्चात् सभी लोग मंदिर के प्रांगण में बैठ चुके थे .सबकी दृष्टि अभिमन्यु पर ही थीं ....अब  भजन का समय था ..मंदिर का शांत भक्तिमय वातावरण ..अभिमन्यु को अच्छा लग रहा था ...तभी सीता आवास से निकल कर धीरे धीरे आ कर मूर्ति को नमन कर वहीं पुजारी जी के समीप दोनों पांव मोड़ कर बैठ गयी..पुजारी जी ने  अभिमन्यु का परिचय करवाया ..10. साल बाद देख रहा था वह सीता को ...साधारण सा परिधान पीला सलवार कमीज़ सफेद दुपट्टा खुले चमकीले लम्बे केश ..साधारण नाक नक्श किन्तु एक दिव्य तेज़ चेहरे पर ..नज़र आ रहा था.....

मंदिर प्रांगण में उपस्थित  गाँव के सभी उपस्थित जन जैसे इसी क्षण की प्रतीक्षा में हों ..सब शांत हो कर एक टक सीता के दिव्य चेहरे पर दृष्टि गड़ाए बैठे थे .अभिमन्यु की भी कुछ ऐसी ही स्थिति थी ..वातावरण निस्तब्ध्द शांत ..और सीता आँखें बंद कर के जैसे गायन के पूर्व स्वयं को तैयार कर रही थी ..और फिर अचानक  अपूर्व शान्ति को भेदती गीता के श्लोक के बोल के साथ  सीता की मधुर आवाज़ प्रांगण में गूँजने लगी ....एक क्षण अभिमन्यु को जलतरंग बज उठने का आभाष हुआ ..अद्भुत मधुर स्वर ..प्रत्येक स्वर में मोहित करती कशिश ..श्लोक समाप्त हुआ और उसी लय  में सीता ने सुदामा  चरित्र का मधुर ह्रदय स्पर्शी शब्दों से सज़ा हुआ मनमोहक भजन प्रारम्भ कर दिया ..प्रांगण में उपस्थित प्रत्येक महिला , पुरुष ,बच्चा सब भाव विभोर हो कर भजन की मन मोहक स्वर लहरी के प्रभाव में आँख बंद किये भजन की लय के संग सर इधर उधर करते  झूम रहे थे ..अभिमन्यु को पता नहीं चला कब उसकी आँखें बंद हुई ..भजन के स्वरों ने उसकी चेतना को कब वश में किया उसे आभास ही नहीं हुआ ..स्वरों का प्रत्येक आरोह अवरोह .अभिमन्यु का  रोम रोम तरंगित कर विद्युत् प्रवाह सा प्रवाहित कर रहा था ..और फिर एक आलाप के साथ जब भजन समाप्त हुआ तो ऐसा प्रतीत प्रतीत हुआ जैसे अमृत वर्षा होते हुए अचानक रुक गयी हो .. सभी की चेतना वापस लौटी ..अभिमन्यु ने आँखे खोली तो उसे आँखों के छोरों  पर नमी का आभाष हुआ भजन एवं शीतल स्वर लहरों के प्रभाव में वह भावुक हो के कब बह गया उसे अपनी वर्तमान स्थिति पर स्वयं आश्चर्य हो रहा था ....ऐसा पहले कभी अनुभव नही हुआ था ..संगीत गीत में अभिमन्यु की रूचि थी .थोड़ी बहुत गायन और वादन का किंचित  प्रारम्भिक ज्ञान उसे था ..किन्तु कुछ क्षण पूर्व जो घटित हुआ वह विलक्षण अनुभव था ..अपनी जेब से रूमाल निकाल कर आँखों की नमी को सुखाने का प्रयास करते हुए इधर उधर  देखा .तब तक  सीता अपने स्थान से उठ कर गर्भ ग्रह में जा के राधा कृष्ण की मूर्ति को नमन कर दृष्टि झुकाये सबको दोनों हाथ जोड़ कर पुनः अपने आवास की और जाती हुई दिखाई दी ..

.पार्श्व से उसका पीला परिधान और कमर से नीचे तक खुले चमकते केश ..अभिमन्यु को बस इतना ही दिखाई दिया .सभी लोग एक एक कर प्रस्थान कर रहे थे .वह भी पुजारी जी की अनुमति ले उठ गया ..और मूर्तियों को नमन कर ..मंदिर के प्रवेश द्वार की और धीरे धीरे चल पड़ा .जहां पहले से खड़ा छोटू उसकी  प्रतीक्षा कर रहा था .प्रवेश द्वार तक पहुंचते कई बार अभिमन्यु की नज़रें पुजारी जी के आवास के द्वार की और गयी जहां से सीता कुछ क्षण पूर्व अंदर गयी थी .....न जाने क्यूँ मंदिर से वापस लौटते हुए अभिमन्यु को एक 'रिक्तता' का आभास हो रहा था .ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे कुछ , शायद ह्रदय का कुछ अंश ..पीछे मंदिर में ही कहीं छूट गया हो ..सीता के भजन की मधुर स्वर लहरियां मन मष्तिष्क में अभी भी गूँज रही थीं ..छोटू उससे पता नही क्या क्या समझाता जा  रहा था आस पास के बारे में किन्तु अभिमन्यु का मन शायद अभी भी सीता के भजन के स्वरों के  मोह पाश के वश में था .............                                         

               बखरी पहुंचा तो माँ भोजन हेतु प्रतीक्षा करती हुई मिली ..किन्तु अभिमन्यु को किंचित भी भोजन की इच्छा नहीं थी .चुपचाप भोजन समाप्त किया ..बड़ी बहू जी को लगा शायद बोर होने की वजह से अपनी नाराजगी का प्रदर्शन कर रहा है ..वो मुस्कुरा के बोली   ". अभी बेटा बस दो दिन की बात है  ..दादी ठीक हो जांय और बस फिर हम लोग वापस लौट जाएंगे ..मंदिर में पूजा करवानी है ..वो मैं करवा लूँगी तुम वापस चले जाना ..".  माँ अभी के सर पे हाथ फिराते हुए बोल रही थीं ..लेकिन अभिमन्यु शायद शतप्रतिशत अपने आप में नही था ..भोजन कर के अपने कमरे में बिस्तर ..पे काफी देर तक लेटा हुआ वही भजन गुनगुनाते हुए और मस्तिष्क में  उसी अद्भुत वातावरण के प्रभाव में कब नींद आ गयी पता ही  नहीं चला ..     ........................................... 

रात भर अलग अलग तरह के टुकड़ों टुकड़ों में सपने आते रहे अभिमन्यु को बादलों के सपने ..फूलों का बड़ा सा बाग़ और डाली पे बेठी मधुर स्वर में . गाना गाती  कोयल ..और बीच बीच में दूर से ..अभिमन्यु का नाम ले के बुलाती हुई कोई अनजान लेकिन बेहद मनमोहक आवाज़...

            सुबह देर से उठने की आदत है अभिमन्यु की .लेकिन आज पता नही क्यू वो अपने समय से काफी पहले ही उठ गया ..तैयार हो के बाहर आया तो बड़ी बहू जी मंदिर जाने की तैयारी करती हुई दिखी ..अभी को तैयार देख कुछ आश्चर्य से बोल पड़ी " अभी बेटा क्या बात है इतनी जल्दी उठ गए नींद तो आयी न ठीक से ". .कुछ नही माँ नींद आज जल्दी खुल गयी अभिमन्यु मुस्कुरा के बोला .अभिमन्यु की मुस्कुराहट देख बड़ी बहू जी को किंचित राहत महसूस हुई ..जब से गाँव आया है शायद पहली बार मुस्कुराते दिखा है ..मन ही मन सोच कर बड़ी बहू जी बड़ी मालकिन के कक्ष में चली गयीं ..अभिमन्यु वहीं काम में लगे छोटू के पास जाकर खड़ा हो गया .अरे भैया इतनी जल्दी ..तू भी तो इतनी जल्दी आ के काम भी शुरू कर चूका ..अरे भैया मैं तो अँधेरे उठ जाता हूँ फिर नन्हे बब्बू के साथ व्यायाम करता हूँ उसके बाद नदी में स्नान कर बखरी आ के काम शुरू करता हूँ ..मेरा नियम है रोज का ..छोटू कुछ ज्यादा ही बातूनी लगा अभिमन्यु को ..छोटू मंदिर चलें ?. अभिमन्यु के इस अप्रत्याशित प्रश्न पर छोटू क्षण भर उसका मुँह ताकता रहा जैसे पक्का करना चाहता हो ..की अभिमन्यु क्या वास्तव में इतनी सुबह सुबह मंदिर जाना चाहता है ..अभिमन्यु को भी इस बात का आभास हुआ तो उसने अपनी बात सुधारने का प्रयास किया .यार इतनी सुबह उठ गया हूँ बोर हो जाऊँगा मंदिर चलकर .सुबह की आरती में शामिल हो के आ जाएंगे कुछ  समय कट जाएगा ..मगर भैया सुबह सिर्फ आरती होती है सीता दीदी का भजन तो सिर्फ साँझ की आरती के बाद होता है ..छोटू की बात से किंचित निराशा तो हुई .किन्तु अभिमन्यु ने जाहिर नही होने दिया ..प्रकट में बोला हाँ छोटू कमाल का भजन गाती हैं वो पुजारी जी की बेटी ..अरे भैया आपको नही पता उनका भजन सुनने दूर दूर से लोग आते हैं .एक बार कुछ लोग आये थे दीदी को गाने के लिए बहुत मनाया उन्होंने मना कर दिया .सूना है . टीवी में दीदी  भजन गातीं मगर उन्होंने साफ़ मना कर दिया मिली भी नही उनसे .वैसे भी वो कभी बाहर नही निकलती मंदिर से. न ही किसी से ज्यादा बात करती हैं .बस सांझ की आरती के बाद भजन के समय ही दिखती हैं थोड़ी देर ....

..छोटू काम करते हुए लगातार बताता जा रहा था लेकिन न जाने क्यू इस समय छोटू अभिमन्यु को बिलकुल भी ज्यादा बातूनी नहीं लग रहा था ..सीता के बारे में जितना भी छोटू बता रहा था अभिमन्यु की उत्सुकता और ज्यादा बढ़ती जा रही थी .उसका मन कर रहा था की छोटू सीता के विषय में .और बात करे ..करता रहे ..छोटू अपना काम खत्म कर के बोला  "चलिए भैया मंदिर चलें .मेरा काम खत्म हो गया ". दोनों निकले तो बड़ी बहू जी भी  विमला काकी के साथ पूजा के लिए  मंदिर जाने को तैयार दिखीं .माँ मैं भी चलता हूँ मंदिर आपके साथ ..बड़ी बहू जी ने किंचित आश्चर्य से अभिमन्यु को देखा..अविश्वास प्रदर्शन की  तिरछी मुस्कुराहट उनके ओजपूर्ण चेहरे पर छन भर को आयी .और उन्होंने अपना सर सहमति में हिला दिया .सभी लोग हवेली के मुख्यद्वार से बाहर आ कर मंदिर के रास्ते पे बढ़ चले ..गाँव की महिलाएं बडी बहू जी को देखने अपने अपने दरवाज़ों पे चेहरे पे  कौतूहल एवं नज़रों में स्नेह व् आदर  लिए बड़ी बहू जी को प्रणाम कर रही थीं और बड़ी बहू जी अपनी  चिर परिचित मुस्कान के साथ सभी को चलते हुए सम्बोधित करती हुई उनके अभिवादन का प्रतिउत्तर देती हुई उन सबके हाल चाल पूछती  आगे बढ़ती जा रही थीं ..यही बड़ी बहू जी का वो रूप था जिसकी गाँव की प्रत्येक आयु वर्ग की महिलायें उनकी प्रशंसक थीं ..मंदिर पहुंच कर बड़ी बहू जी पूजा में व्यस्त हो गयीं .और अभिमन्यु कान्हा जी को नमन कर पुजारी जी का आशीर्वाद ले गर्भ गृह से बाहर आ कर पुजारी जी के आवास की और नज़र डालता हुआ  धीरे धीरे  फूलों की क्यारियों के पास से चलकर असगंध के पेड़ के पास पहुंच गया .माली काका हाथ में छोटा सा लोहे का कोई औजार लिए वहीं जमीन से कुछ मिटटी खोद कर पेड़ के चारो और से मिटटी डाल रहे थे अभिमन्यु को देख कर हाथ रोक लिए और मुस्कुरा के " अरे बेतवा तुम ता बहुते बड़ा होइ गए .".हाथ से बड़ा होने का इशारा करते हुए बोले ..अभिमन्यु सिर्फ मुस्कुरा दिया ..और तभी अचानक अभिमन्यु को अपने पीछे वही  शहद घुली आवाज़ सुनाई दी .काका फूल तोड़ लिए हों तो दे दीजिये पूजा का समय हो गया है ..

   अभिमन्यु पीछे मुडा कुछ कदम दूर सीता कपास के झाड़ के पास खड़ी कपास के फल को तोड़ कर उससे सफेद कपास निकालकर काले बीज को अलग करने का प्रयास कर रही थी ..आज भी चेहरे पर वैसा ही किसी देवी जैसा दिव्य तेज़ बाल खुले .परिधान वही सादा सलवार कमीज़ किन्तु आज रंग नीला आसमानी ..अभिमन्यु को अपनी ह्रदय की धड़कनो की गति कुछ तीव्र होती प्रतीत हुई .माली काका फूल तोड़ने में व्यस्त थे ..और सीता को जैसे अभिमन्यु की वहाँ  उस स्थान पर उपस्थिति से कोई सरोकार ही नही था ..जैसे वहाँ अभिमन्यु उसे दिखाई ही नही पड रहा था .....आखिर अभिमन्यु ने क्षीण आवाज़ में अभिवादन किया  ". नमस्कार सीता जी आप बहुत अच्छा गाती हैं ". ...प्रतिउत्तर में सीता ने सिर्फ हाथ जोड़ दिए बिना अभिमन्यु की और देखे .निर्विकार भावहीन  चेहरा.. और बस कपास के दाने से रुई के रेशे निकालने में व्यस्त ..इसी बीच माली काका फूलों  से भरी बांस की छोटी बाल्टी जैसी डलिया लिए करीब आ गए   ". ऐई लियो बिटिया ..". अभिमन्यु कुछ बोलता उसके पहले ही सीता वहाँ से तेज़ कदम बढ़ाते हुए जा चुकी थी ....

काका ये सीता जी किसी से भी ठीक से बात .. नही करती क्या .माली काका मिटटी खोदते हुए बिना  अभिमन्यु की और देखे ..नहीं बेतवा बिटिया कौनो से नाही बोलत..अभिमन्यु को सीता का रूखा भावहीन व्यवहार उद्वेलित कर गया ..वह चुपचाप धीमे कदम बढ़ाते हुए माँ को बिना बोले मंदिर से बाहर आ गया .छोटू वहीं कहीं आसपास था अभिमन्यु को बाहर आता  देख पास आ गया किन्तु अभिमन्यु का उतरा चेहरा देख कुछ बोलने का साहस नही कर पाया और चुपचाप उसके पीछे चलने लगा ...अभिमन्यु अपने आप से मन ही मन सवाल जवाब करता हुआ  बखरी आ गया और सीधा अपने कमरे में जा के अनमना सा बिस्तर पर लेट गया ..उसके साथ जो व्यवहार आज सीता ने किया था वो अपनी भाषा में मन ही मन स्वयं से उसे सीता का घमंड ,भाव दिखाना कह रहा था .किन्तु मन का कोई कोना इस बात को स्वीकार नहीं कर रहा था ..

  .अपने आसपास के मित्र सहपाठी वर्ग में सभी लड़के लड़कियों के बीच अभिमन्यु को हमेशा विशेष स्थान मिलता था मित्र उसके सानिध्य को गौरव मानते थे .सामान्य लड़की का इस प्रकार अभिमन्यु की अनदेखी .शायद उसके मन को विचलित  कर रही थी .वह बखरी के पीछे वाले दरवाज़े से बगीचे में आ गया .बहुत बड़ा बगीचा बखरी के पिछले दरवाजे से निकलते ही शुरू हो जाता है .चुपचाप एक पेड़ के नीचे बैठ कर पूरे घटना क्रम का विश्लेषण करने लगा ..अभिमन्यु को गुस्सा आ रहा था सीता के ऊपर पहले सोचा मंदिर जाना बंद कर दे लेकिन स्वयं यह विचार आया मंदिर हमारा है मैं वहाँ जाना बंद क्यूँ करूँ .आखिर उसने निश्चय किया की वो मंदिर रोज जाएगा लेकिन अब सीता से कभी बात नही करेगा ..यह निर्णय लेकर उसे राहत हुई ..  शाम को छोटे दादा जी आ गए तो उनके साथ बातें करते वक्त निकल गया . ..अगली सुबह फिर मन नहीं माना और अभिमन्यु फिर मंदिर पहुंच गया अकेले ही ..आज छोटू छोटे दादाजी की सेवा में व्यस्त था ....मंदिर में प्रवेश किया सबकुछ वैसा ही था प्रांगण सुनसान ..पुजारी जी शायद अपने आवास में थे .उड़ती सी दृष्टि आवास की और डाल कर  माली काका की और बढ़ गया ...काका उसकी तरफ देख कर मुस्कुराये ..बोले कुछ नही बस अपना काम करते रहे ..और अभिमन्यु पास के सुन्दर पौधे से गुलाब का एक फूल तोड़ कर खुश्बू लेने लगा ..जैसे ही माली काका ने उसके हाथों में एक बड़ा सा सुंदर गुलाब देखा के न जाने क्यू उसके चेहरे पे नागवारी के चिन्ह आ गए ..क्या बात है काका मैंने आपसे बिना पूछे फूल तोड़ लिया क्या इसलिए नाराज़ हो गए ..अरे नाहीं बेतवा आप मालिक लोग हैं हमरे अन्नदाता हम नाराज कइसन होइ सकत..मगर बेतवा कौनो फूल टोरत है ता हमका नाहीं अच्छा लगत ..क्यूँ काका .अभिमन्यु ने किंचित आश्चर्य मिश्रित भाव में पूछा ..  "  क्यूंकि फूल सिर्फ भगवान् की पूजा के लिए होते हैं  .. कोई और तोड़े ये काका को पसंद नही ". वही जलतरंग सी खनक लिए आवाज़ पीछे से अभिमन्यु के कान में मिश्री घोल गई ..सीता आकर कब उनके पीछे खड़ी हो कर उनकी बातें सुनने लगी पता नही चला .

      अभिमन्यु तुरंत आवाज़ की दिशा में पीछे घूम गया ..कुछ कदम की दूरी पर सीता अपने उसी चिरपरिचित स्वरुप में खड़ी दिखाई दी .हालांकि आज भी उसकी नज़रें नीची असगंध की जड़ों पर टिकी हुई थीं किन्तु चेहरे पर कल की अपेक्षा सामान्य भाव थे ..क्षण भर  अभिमन्यु का मन मष्तिष्क पुनः जड़वत सा हुआ .सुबह का   सीता से कभी बात न करने का किया उसका  स्वयं का निश्चय कहीं विलुप्त हो गया .दोनों हाथ अभिवादन में स्वतः जुड़ गए और क्षीण सा स्वर अभिमन्यु के मुँह से निकला ..आप ...सीता ने भी अभिवादन के प्रतिउत्तर में हाथ जोड़े .और पहली बार सीधी दृष्टि अभिमन्यु पर डाली बड़ी बड़ी गहरी आँखें मोटी पलकें ...साधारण किन्तु अप्रतिम छवि ..एक क्षण अभिमन्यु को देख दृष्टि फिर से असगंध के तने से चिपक गयी ...देखिये न सीता जी मैंने एक गुलाब का फूल इसकी अद्भुत सुंदरता और सुगंध से आकर्षित हो कर तोड़ लिया ..तो मुझे लगता है माली काका को अच्छा नहीं लगा ...".फूल भगवान की पूजा के उद्देश्य के  अलावा कोई और तोड़े .काका को ..पसंद नही .".सीता एक दृष्टि  अभिमन्यु के हाथ में पकड़े लाल गुलाब पर डाल बोल उठी ..किन्तु सीता जी फूल तो फूल हैं उनकी सुगंध , सुंदरता सभी को आकर्षित करती है ..कोई आकर्षित हो यदि फूल तोड़ ले तो इसमें अनुचित क्या है ..मुझे यह बात समझ नही आयी ..और वैसे भी फूलों का जीवन कुछ दिनों का ही होता है ..कोई भी यदि इन्हे न भी तोड़े तो भी स्वतः ये डाल से झड़ जाएंगे ..अभिमन्यु हाथ में पकड़े गुलाब पर ऊँगलियां फिराते हुए बोल रहा था..एक क्षण शांति के पश्चात सीता की मधुर आवाज गूँज उठी ..देखिये अभिमन्यु जी ..आप तो बहुत पढ़े लिखे हैं ..फूलों का जीवन भले ही कुछ दिनों का हो किन्तु .उनके जीवन का वास्तविक उद्देश्य सिर्फ भगवान के चरणों में अर्पित होना ही है ..उनकी सुंदरता सुगंध से आकर्षित हो यदि कोई फूलों को असमय डाली से तोड़े और सुगंध , सुंदरता से क्षण भर आनंदित हो ..फेक दे .तो यह किसी फूल का दुर्भाग्य है .उसका जीवन अर्थहीन उद्देश्य हीन होगा ....फूल मात्र भगवान की पूजा के लिए होते है.. 

.यह बात जिस प्रकार माली काका भली भाँति समझते हैं ..सभी को समझनी चाहिए ..आपको भी ..और इतना कहकर सीता बिना अभिमन्यु की और देखे आवास की और चल पड़ी ...अभिमन्यु अवाक उसे जाते हुए देखता रहा और उसकी मोहक आवाज और अर्थपूर्ण शब्द .उसके मन मष्तिष्क में प्रतिध्वनित होते रहे ..सीता के शब्दों का मन ही मन अर्थ खोजता हुआ अभिमन्यु बखरी आ गया ..और अपने कक्ष में आकर लेट गया .मन में सीता के शब्द बार बार उथल पुथल मचा रहे थे .कान में उसके कहे शब्द गूँज रहे थे .."फूल सिर्फ पूजा के लिए होते हैं " .................................................. आज अभिमन्यु सांझ की आरती में मंदिर नही गया माँ के बोलने पर भी नही ..बड़ी बहू जी को इस बात से राहत थी की अभिमन्यु कम से कम वापस शहर  जाने की बात नहीं कर रहा था आज तीसरा दिन था और अभिमन्यु ने माँ से वापस लौटने की कोई भी बात नहीं की थी ..अगले दिन सुबह फिर अभिमन्यु मंदिर पहुंच गया ..मंदिर प्रांगण सुनसान था .आज माली काका भी दिखाई नहीं दे रहे थे .गर्भ गृह के द्वार के समीप पुजारी जी बैठे कोई ग्रंथ पढ़ने में लीन थे .अभिमन्यु धीरे धीरे पुजारी जी के समीप आ गया झुक कर चरण स्पर्श किये तो पुजारी जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गयी अभिमन्यु के सर पे हाथ रख आशीर्वाद दिया और समीप चटाई पे बैठने का इशारा किया ..अभिमन्यु चुपचाप बैठ गया ..पुजारी जी ने हाथ में लिया ग्रन्थ क्षेपक लगा कर एक तरफ रख दिया और अभिमन्यु से उसके  पढ़ाई से संबंधित प्रश्न पूछते रहे ..पुजारी जी एक बात कहूँ यदि आपकी आज्ञा हो ..बोलो न बेटा क्या कहना चाहते हो ..आपकी बेटी सीता जी की गायन क्षमता उत्कृष्ट है यदि सीता जी को उचित मंच पर प्रतिभा दिखाने का अवसर मिले .तो मेरा विश्वास है कि बहुत शीघ्र वो  शिखर पर होंगी ..पुजारी जी अभिमन्यु की बात धैर्य से सुनते रहे और .फिर उनके मुख पर क्षीण मुस्कुराहट आ गयी ..ऐसा संभव नहीं है बेटा .मुझे उसकी प्रतिभा का ज्ञान है उसे भी है किन्तु वह ..मंदिर में कान्हा जी के अतिरिक्त कहीं और गायन के लिए किसी भी प्रकार तैयार नही ..

..बेटा आज जो बात तुमने कही बहुत बार बहुत लोग पहले भी कह चुके हैं ..तुम्हारे दादा जी बड़े बब्बू स्वयं सीता को समझाने का भरसक प्रयास कर चुके हैं .किन्तु कोई भी उत्तर नही दिया उनकी भी बात का .बस मौन रही ..न जाने क्या लिखा है मुरली वाले ने इस अभागिनी की भाग्य में ..एक ठंडी स्वास सी छोड़ते हुए पुजारी जी बोले ..अभागिनी क्यू कह रहे हैं पुजारी जी ..अभिमन्यु के मुंह से संक्षिप्त प्रश्न निकल गया ..उसे पुजारी जी का सीता को ऐसे शब्दों से सम्बोधित करना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा ..अरे बेटा तुम्हे शायद जानकारी नहीं है ...क्या ?. अभिमन्यु ने कौतूहल वश पूछा ..बेटा मैं तुम्हे सीता के विषय में बताता हूँ ..बहुत अभागिनी है ..पैदा हुई तो 6. महीने की हुई थी उसी समय उसकी माँ का अचानक निधन हो गया ..किसी प्रकार मैं ने माँ बनकर उसे पाला ..और फिर जब 10. साल की हुई तो तुम्हारे दादाजी के अनुरोध पर उसे लेकर मैं यहां आ गया ..धीरे धीरे बड़ी होती गयी .उसी समय आप लोग शहर चले गए ...अभिमन्यु सांस रोके पुजारी जी की बातें सुनता जा रहा था ...पुजारी जी ने आगे कहना जारी रखा बेटा शायद तुम्हे जानकारी नही है सीता"विधवा है"..............

पुजारी जी के शब्द हथौड़े की तरह अभिमन्यु के मष्तिष्क में बार बार चोट करने लगे ..सीता विधवा है ....सीता विधवा है ...पुजारी जी लगातार बोलते जा रहे थे ..३.साल पहले एक अच्छा खाता पीता घर देख शांत संस्कारी लड़का देख मैंने सीता का विवाह कर दिया .विवाह साल भर पहले और गौना अगले साल होना निश्चित हुआ .हमारे यहां विवाह का ये नियम है ..बारात आयी विवाह सम्पन्न हुआ ..अगले दिन बारात वापस लौट रही थी .जिस वाहन में दूल्हा था वह एक भयानक सड़क दुर्घटना में दुर्घटना ग्रस्त हो गया .वाहन में सवार दूल्हा सहित सभी .8 लोग घटनास्थल पर ही स्वर्गवासी हो गए ..अभिमन्यु को पुजारी जी के शब्द सुनाई तो दे रहे थे किन्तु बस एक ही वाक्य उसके मश्तिष्क में बार बार गूंज रहा था ..सीता ..विधवा ..है ..

        पुजारी जी बोलते जा रहे थे ..जैसे ही सीता को ये खबर मिली .बेहोश हो गयी ..2 दिन बाद होश आया .तब से किसी से बात नहीं करती मुझसे भी नहीं .जितना पूछो बस उतना उत्तर दे के अपने आवास के भीतर गुमसुम बैठी रहती है ..नही तो पहले पूरा घर सर पे उठा के रखती थी ..भगती  दौड़ती हंसती खिलखिलाती अकारण ही बिना  किसी के बोले बिना किसी सुनने वाले के अकेले ही गाती फिरती थी .न जाने कौन सा अपराध हुआ होगा मुझसे पूर्व जन्म में जिसका दंड द्वारिका धीश मेरी फूल सी बच्ची को दे रहे हैं ..पुजारी जी की आँखें भीग गयी थी .कंधे पे पड़े गमछे से उन्होंने अपनी आँखें पोंछी ..और अभिमन्यु की तो जैसे पांव तले धरती ही नही थी ..चुपचाप उठा .पुजारी जी को हाथ जोड़े और कान्हा जी की मूर्त्ति के समक्ष एक क्षण खड़ा रहा ..जैसे शिकायत कर रहा था कान्हा जी से सीता के दुर्भाग्य की ..मुरली हाथ में पकड़े कान्हा जी की मूर्ति के मुख पर सदा व्याप्त मुस्कान अभिमन्यु को न जाने क्यूँ बिलकुल अच्छी नही लग रही थी ..उस समय ..वह थके कदम से घिसटता हुआ सा चुपचाप  मंदिर से बाहर आ गया ...... ..मन में भीषण उथल पुथल मची थी अभिमन्यु के ..बखरी के पिछले दरवाजे से निकल कर बगीचे में जा के बैठ गया ..पूरे घटना क्रम पर विचार करने लगा ..स्वयं पर क्रोध आया .कि उसने सीता के रूखे व्यवहार का बुरा माना ..और निश्चित किया कि वह इस विषय पर सीता से विस्तृत चर्चा करेगा ..

     किसी प्रकार उद्विग्नता में दिन व्यतीत हुआ अभिमन्यु का ..बड़ी बहू जी काफी व्यस्त थीं आने जाने वालों में और बड़ी मालकिन की देख भाल में .उनका स्वास्थ्य धीरे धीरे सुधर रहा था ..छोटे दादा जी अभिमन्यु को बार बार व्यायाम की सलाह देते उनसे किसी प्रकार बचता हुआ अभिमन्यु ..छोटू जबसे नन्हे बब्बू आये थे उनकी सेवा में ज्यादा ही व्यस्त हो गया था ..अभिमन्यु का मन छटपटा रहा था सीता से मिलकर बात करने को आखिर उसने निश्चय किया कि कल सुबह वह सीता से मिलकर बात करेगा चाहे कुछ भी हो ...ये निश्चय कर अभिमन्यु बिस्तर पर लेट गया .बहुत देर तक नींद नही आयी ..थोड़ी सी झपकी आयी तो आज स्वप्न भी अजीब .तरह के आये ..सुनसान उजाड़ रेगिस्तान ..अँधेरा ..तेज चलती रेतीली आंधियां ...बादलों की गड़गड़ाहट ..बस ऐसे ही सपनों में रात व्यतीत हुई ..ठीक से सोया नही ..सुबह उठा तो बड़ी बहू जी की दृष्टि एक क्षण उसके उतरे चेहरे और वीरान  लाल आँखों में अटक गयी ..क्या बात है अभी ..सोये नहीं क्या रात ठीक से ..कुछ नही माँ ..वह आगे बढ़ गया किंचित अनिश्चितता में माँ को छोड़कर ..बाहर छोटू को खोजने लगा .लेकिन वो कहीं दिखाई नही दिया ..आखिर अकेला ही मंदिर के रास्ते पे बढ़ गया ..मंदिर में सीधा मूर्ति के समक्ष पहुंच मन ही मन कान्हा जी से अपने निर्णय में सहयोग आशीर्वाद और शक्ति देने की प्रार्थना की .और बगीचे में आ गया माली काका दिखाई दिए ..कैसे हैं काका  माली काका ने एक बार सर उठा के देखा अभिमन्यु को ..और अच्छा हूँ इस आशय से सर हिला दिया बोले कुछ नहीं ..काका आज पुजारी जी नही दिखाई दे रहे ..?. पास के गाँव गे हैं बेतवा सांझ के लौटिहैं ..माली काका अपने काम में व्यस्त हो गए ...अभिमन्यु धीरे धीरे कदम बढ़ाता हुआ पुजारी जी के आवास की तरफ बढ़ चला ..दरवाजे पर पहुंच कर पुजारी जी को  आवाज दी .सामने द्वार पर  सीता दिखी .नीची नज़रें किये बस बारीक सी आवाज़ में इतना कहा .पिता जी नही हैं साँझ के समय वापस आएंगे ..

इतना कहकर सीता वापस हटने लगी दरवाजे से ..सुनिए सीता जी मुझे आपसे बात करनी है .सीता वैसे ही अभिमन्यु की तरफ पीठ किये खड़ी रही ..अभिमन्यु निश्चय कर चुका था अपनी बात कहने का ..देखिये मुझे आपके बारे में सबकुछ पता चल चूका है मैं आपसे सिर्फ यह कहना चाहता हूँ की क्यों न आप पिछला  सबकुछ भूल कर नया जीवन प्रारम्भ करें . सीता अभिमन्यु की तरफ घूम कर एक क्षण उसके चेहरे पर देखती रही .फिर धीमी आवाज से बोली ..अभिमन्यु जी जिस समाज से हम हैं वहाँ जो कुछ मेरे साथ पूर्व में घटित हुआ है उसे भूलने की न अनुमति है और  न ही मेरे लिए यह यह संभव है ..मैं आपकी भावनाओं का सम्मान करती हूँ किन्तु मेरा निवेदन है की आप मुझे मेरी स्थिति पर छोड़ दें .मेरा भाग्य कांन्हां जी लिख चुके हैं और उनके किसी निर्णय में मेरा कोई प्रतिकार नही .............. ...      किन्तु आप मेरी बात पर विचार तो करें ..सीता ने हाथ दिखा कर अभिमन्यु को रुकने का इशारा किया ..मेरा निवेदन है कि आप .यहां से चले जांय .ये गाँव है .किसी ने आपको आवास के समीप खड़े मुझसे बात करते देख लिया ..तो पता नही क्या क्या बातें होने लगेंगी ..दया करें मुझ पर .. अभिमन्यु ने कहा मैं ऐसे नहीं जा सकता ..जब तक आप मेरी बात का उचित उत्तर नही देतीं ..क्या कहना है आपको शीघ्र कहिये ...अभिमन्यु ने साहस बटोर कर कहा ..यही कि आपके  फूल जैसे  व्यक्तित्व को  .निरुद्देश्य ..देख मुझे पीड़ा हो रही है ...क्या सोचते हैं आप मेरा जीवन उस फूल के जैसे है जो एक बार देवता की पूजा में अर्पित हो चूका है .और अब किसी और देवता की पूजा के योग्य नही रहा ..आप समझती क्यू नही सीता जी ..फूलों और वास्तविक जीवन में फर्क होता है ...सीता वैसे ही निर्विकार भाव से बोली ..कोई फर्क नही एक ही बात है ..और हाथ जोड़ कर झटके से अंदर चली गयी..

                अभिमन्यु तेज़ तेज़ कदमों से चलता हुआ सीधे बखरी पहुंचा और माँ को खोजने लगा बड़ी बहू जी विमला काकी से बातों में व्यस्त थीं .माँ मुझे आपसे कुछ बात करनी है  बोलो न अभी क्या बात है बड़ी बहू जी बोलीं.उन्हें लगा हो न हो अभी आज वापस लौटने की बात करेगा ..यहां नहीं माँ  .आप अपने कमरे में चलिए मुझे आपसे अकेले में बात करनी है ..बड़ी बहू जी असमंजस की स्थिति में उठ कर अपने कक्ष में आ गयीं पीछे पीछे अभिमन्यु ..बोलो क्या हुआ ....अभी .....     माँ. आपको पुजारी जी की बेटी सीता के बारे में जानकारी है ..हाँ दुर्भाग्य है बेचारी लड़की का ..भगवान की लीला कोई ..क्या कर सकता  हैं ...तुम क्यूँ पूछ रहे हो ..माँ  सीता की फिर से शादी तो हो सकती है न ..हाँ हो तो सकती है ..मगर पहले तो सीता बिलकुल भी तैयार नही शादी के लिए ..उस  के मन पर बहुत गहरा आघात लगा है ..और यदि कैसे भी सीता तैयार भी हो जाय तो अब कोई भी अच्छा लड़का नही अपनाएगा उसे ..एक बार विधवा का नाम मिल चूका है ..मगर माँ इस में उस निर्दोष की क्या गलती है ..गलती किसी की नहीं है बेटा उसका भाग्य ....ही ऐसा है .हम क्या कर सकते हैं .......... .माँ क्या मैं सीता से  शादी कर सकता हूँ ....एक क्षण बड़ी बहू जी अवाक अभिमन्यु का मुँह देखती रह गयीं .और धीरे धीरे उनके चेहरे पर क्रोध की रेखाएं दिखाई पड़ने लगीं ....गुस्से से बोलीं ..तुम्हारा  दिमाग खराब हो गया है क्या ..पागल हो गए हो ..बे सर पैर की बात कर रहे हो ..शादी का मतलब भी पता है तुम्हे ..माँ अभिमन्यु पर पहली बार नाराज़ हुई थीं ....लगा तार बोलती जा रही थीं बड़ी बहू जी ..उनका स्वर तेज़ होता जा रहा था ..ये सब बचपना छोडो कल सुबह हम लोग वापस शहर चल रहे हैं ...अभिमन्यु माँ का मूड देख मौन तो हो गया किन्तु मन ही मन उसका निश्चय अडिग था ..वह फिर मंदिर पहुंच गया सीता बारामदे में खड़ी हुई दिख गयी ....

अभिमन्यु को देख ठिठक के खड़ी रह गयी ..सीता और अभिमन्यु के अलावा मंदिर प्रांगण में कोई नही था ..अभिमन्यु के चेहरे पर निश्चय के भाव थे .वह सीधा सीता के सामने जा के खड़ा हो गया और सीता के कुछ बोलने से पहले बोल उठा .सीता जी मुझे कल सुबह वापस जाना है .मैं आपसे यह कहने आया हूँ के मैं आपसे विवाह करना चाहता हूँ आप यदि मेरी जीवन संगिनी बने तो मेरा जीवन धन्य होगा ..अभिमन्यु की बात सुन सीता की आँखें आश्चर्य से फ़ैल गयीं थीं ..भीगी आवाज़ में उसने बस इतना कहा था ..आप बहुत अच्छे हैं अभिमन्यु जी ...लेकिन क्षमा कीजिये यह सम्भव नहीं ..में प्रार्थना करती हूँ दोनों हाथ जोड़ कर की यहां से चले जांय और कभी मुझसे इस विषय में बात न करें .सीता की .बड़ी बड़ी आँखों से आंसू  की बुँदे टपक पड़ी .और अभिमन्यु अवाक् खड़ा रहा ..उसने एक प्रयास फिर किया ..आप मेरी बात नही मानतीं तो कोई बात नही ..आप चाहती हैं की मैं आप को कभी न मिलूँ तो मैं कभी आप के सामने नही आऊंगा .लेकिन मैं एक बात कहूँगा ..मैं भी किसी और के साथ अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता ..आजीवन अकेला रहूँगा ..आप अपनी बात पर जिस तरह  कायम हैं ..उसी तरह मेरा भी निश्चय अडिग है ..अभिमन्यु दोनों हाथ जोड़ कर उत्तेजना वश एक झटके से वापस जैसे ही घूमा की उसे सामने ही मंदिर प्रांगण में मुख्य द्वार के पास छोटे दादा जी के दो कारिंदे लठैत खड़े हुए ..दोनों को घूरते दिखे ...अभिमन्यु उड़ती हुई नज़र उनपर डाल वापस लौट पड़ा ...

           अभिमन्यु सीधा जा के अपने कमरे में दरवाजा बंद कर के बिस्तर पर लेट गया ..उसकी मनः स्थिति अति व्याकुल .मन में अजीब बेचैनी ..थी विकट दुविधा थी . सीता उसकी बात सुनने तैयार नहीं  थी...और माँ बेहद गुस्सा कोई भी उसके साथ नही ..फिर भी उसने मन में ठान लिया था ..सीता को उसकी बात माननी ही पड़ेगी ..जब तक नही मानेगी वो शहर वापस नही जाएगा ..चाहे कुछ भी हो जाए ..रात को बड़ी बहू जी अभिमन्यु के कमरे में आयीं  ..चेहरे पर शान्ति थी ..संतुलित शब्दों में बोलीं ..अभी बेटा तुम बच्चे हो अभी .दुनिया दारी की समझ नही है ..समझने की कोशिश करो ..तुम्हारा और सीता का कोई मेल नही है ..वो कैसे भी तुम्हारे लायक नही है ..अभी चुपचाप सुनता रहा बड़ी बहू जी बोलती रहीं ..हम लोग सीता के शुभचिंतक हैं ..पहले ही उसके भविष्य की चिंता है तुम्हारे दादा जी ..इस विषय में प्रयास कर चुके हैं किन्तु  उस  लड़की का दुर्भाग्य है ..कोई क्या कर सकता है ..अभी तुम अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो ..इन सब बातों से ध्यान हटाओ अपना ..कल सुबह ..हम लोग वापस जा रहे हैं ..अभिमन्यु  कुछ नही बोला .माँ उठकर चली गयी ....शाम तक अभिमन्यु बिस्तर पे लेटा रहा ..अँधेरा होने लगा था  ..बेचैनी हो रही थी .. उठ के बाहर आया ऐसे ही बारामदे में टहलने लगा ..अचानक छोटे दादा जी के कक्ष से दोनों वही कारिंदे निकलते दिखे जो सुबह मंदिर में अभिमन्यु और सीता को घूर रहे थे ..अभिमन्यु को पता नहीं क्यूँ कुछ असामान्य सा लगा .वह वहीं बारामदे में टहलने लगा ..कुछ ही देर में पुजारी जी उन्ही दो कारिंदो के साथ बखरी के अंदर आते दिखे ..जो सीधे छोटे दादा जी के कक्ष में चले गए ..अभिमन्यु थोड़ा निकट आ के उनकी बातें सुनने का प्रयास करने लगा ..लेकिन कुछ सुनाई नहीं दिया ..कुछ ही क्षणों बाद पुजारी जी निकल कर वापस जाते दिखे बखरी से बाहर ..और पीछे पीछे छोटे दादा जी के  वही दोनों कारिंदे ..और फिर शान्ति छा गयी ..अभिमन्यु ने निश्चित किया की कल सुबह मंदिर जा कर पुजारी जी से बात करेगा और .सीता को फिर समझाने का प्रयास करेगा ..इसी निश्चय के साथ उसकी आँखें बोझिल होती गयी ..और वो ..सो गया ..

           ..सुबह देर से उठा .. माँ उसे देखकर मुस्कुरायी .बोली आज शाम हम लोग वापस चल रहे हैं अभी ..अभिमन्यु कुछ नहीं बोला चुपचाप बाहर निकल गया .न जाने क्यूँ बड़ी बहू जी के चेहरे पे अर्थपूर्ण मुस्कान थी जिसे अभिमन्यु नही देख सका .अभिमन्यु जल्दी जल्दी चलता हुआ सीधा मंदिर पहुंच गया मुख्य द्वार से अंदर पहुंचा तो वातावरण कुछ असामान्य सा लगा मंदिर सुनसान गर्भ गृह में बड़ा सा ताला पड़ा था .अभिमन्यु जल्दी जल्दी पुजारी जी के आवास की ओर गया तो आवास में भी ताला दिखा ..अभिमन्यु की बेचैनी बढ़ती गयी ..मंदिर प्रांगण में कोई भी नही था .न ही कोई चिन्ह दिखाई पड रहा था कि यहां कोई रहता था ..अभिमन्यु पागलों के जैसे इधर उधर दृष्टि दौड़ा रहा था की कोई दिखाई दे तो उससे पुजारी जी और सीता के बारे में पूछे ..अचानक उसकी निगाह असगंध के पेड़ पर पड़ी .सीता के पीले दुपट्टा का छोटा सा टुकड़ा हवा में उड़ रहा था .अभिमन्यु शीघ्रता पूर्वक असगंध के पेड़ के पास पहुंच कर दुपट्टे के टुकड़े को डाली से खींचा तो उसे ऐसा आभाष हुआ की कोई कागज़ का टुकड़ा बाँधा हुआ है .अभिमन्यु जल्दी जल्दी निकाल के पढ़ने लगा ....

        अभिमन्यु जी मुझे विश्वास है की आप सुबह अवश्य आएंगे और मेरा यह सन्देश आपको मिल जाएगा ..हम लोग हमेशा के लिए यहां से जा रहे हैं ..जहां किस्मत ले जाए . जो कुछ पिछले ३ दिनो में हुआ..आशा है आप एक दुःस्वप्न समझ कर  जल्द ही .भूल कर अपना जीवन सुखमय व्यतीत करेंगे ..मेरी प्रार्थना है की मुझे कभी  खोजने का प्रयास नही करेंगे ...............

        अभिमन्यु वहीं असगंध की जड़ों के पास बैठ गया ऐसा लग रहा था जैसे उसका सबकुछ खो गया हो ..एक एक कर कल का घटना क्रम .पुजारी जी को कारिंदों का बखरी छोटे दादा जी के कक्ष में  ले के आना ..माँ का सामान्य व्यवहार ..धीरे धीरे अभिमन्यु को सबकुछ समझ आ गया..माँ के कहने पर नन्हे बब्बू ने  कारिंदों द्वारा  रातों रात पुजारी जी और सीता को कहीं गायब करवा दिया गया था ..आज भी अभी छोटे दादा जी माँ और कारिंदों को माफ़ नही कर पाया और उसने वो पीले दुपट्टे का टुकड़ा .और चार लाइन लिखा हुआ कागज़ संभाल के रखा हुआ है.........…................

  ©संजीव शुक्ला 'रिक्त'

टिप्पणियाँ

  1. हृदयस्पर्शी कहानी..... क्या ही कहने सर..... 🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  2. भाव विभोर कर देने वाली कहानी🙏

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  3. अत्यंत संवेदनशील एवं मर्मस्पर्शी कहानी 💐💐💐💐🙏🏼🙏🏼

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  4. अत्यंत हृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण कहानी 👌👌👌🙏🙏🙏💐💐💐

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  5. अद्भुत अदुत्ये कहानी सरजी🙏🙏🙏

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  6. अत्यंत उरस्पर्शी कहानी गुरुदेव,...अप्रतिम 👏🙏

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  7. बहुत सुंदर भावपूर्ण कहानी 🙏🏻🙏🏻

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