लाचारी ©विपिन बहार
जिंदगी में वो करूँ तुमसे नही इंकार हों ।
मौत का सजदा करूँ फिर मौत से इजहार हों ।।
चोट खाकर अब हमें ये तो भरोसा हो गया ।
प्यार जिससे कर रहे हो प्यार के हक़दार हों ।।
तोड़ देती हर तरफ से ये किताबी आशिकी ।
आदमी यूँ प्यार में ऐसे नही बीमार हों ।।
कर रहे हैं हम ख़ुदा से बस यही अब आरजू ।
अब हमारा एक डेरा चाँद के ही पार हों ।।
हम तड़प कर ना मरे कुछ तो करो मेरे खुदा ।
मौत के सर पर कभी ना आँसुओ का भार हों ।।
आशिक़ी ने यार हमकों यूँ मिलाया मौत से ।
एक शायर फिर कभी ऐसे नही लाचार हों ।।
©विपिन"बहार"
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बहुत बहुत बहुत बेहतरीन ग़ज़ल भाई जी 🙏
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल सर🙏🙏
जवाब देंहटाएंAhaaaaa ... Behtreen gzl bhai ji ... 💐💐💐
जवाब देंहटाएंजी आभार आपका💐
हटाएंबहुत खूब 🌸🌸
जवाब देंहटाएंवाह्हहहहहहह, बेहतरीन ग़ज़ल... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भाई जी💐
हटाएंबेहतरीन मर्मस्पर्शी गज़ल 💐💐💐💐💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ग़ज़ल भईया जी 👌👌🙏
जवाब देंहटाएंजी आभार सर आपका💐
जवाब देंहटाएंबेहतरीन गज़ल 👌👌👌🌹🌹🌹
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