लाचारी ©विपिन बहार

 जिंदगी में वो करूँ तुमसे नही इंकार हों ।

मौत का सजदा करूँ फिर मौत से इजहार हों ।।


चोट खाकर अब हमें ये तो भरोसा हो गया ।

प्यार जिससे कर रहे हो प्यार के हक़दार हों ।।


तोड़ देती हर तरफ से ये किताबी आशिकी ।

आदमी यूँ प्यार में ऐसे नही बीमार हों ।।


कर रहे हैं हम ख़ुदा से बस यही अब आरजू ।

अब हमारा एक डेरा चाँद के ही पार हों ।।


हम तड़प कर ना मरे कुछ तो करो मेरे खुदा ।

मौत के सर पर कभी ना आँसुओ का भार हों ।।


आशिक़ी ने यार हमकों यूँ मिलाया मौत से ।

एक शायर फिर कभी ऐसे नही लाचार हों ।।

         ©विपिन"बहार"


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टिप्पणियाँ

  1. बहुत बहुत बहुत बेहतरीन ग़ज़ल भाई जी 🙏

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  2. वाह्हहहहहहह, बेहतरीन ग़ज़ल... 🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

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  3. बेहतरीन मर्मस्पर्शी गज़ल 💐💐💐💐💐💐

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  4. बहुत खूब ग़ज़ल भईया जी 👌👌🙏

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