होली आई ©संजीव शुक्ला

 होली आयी वन, लता,पत्र में,कुंजन में, 

होली आयी खलिहान,पेड़ की डालों में l

पनघट में,,घर में,कुआ, गली चौराहों में, 

आज़ाद परिंदों में,..... गेहूँ की बालों में ll


टेसू के उजड़े स्याह कलूटे चेहरे पर, 

रंगों के कुछ छींटे पड़ते दिखलाई हैं l

नूतन कोमल सिन्दूरी पुहुप गुलाल भरे, 

कहते पलाश ने होली ख़ूब मनाई हैं ll

यौवन की लाज भरी,मुख सिंदूरी आभा, 

फागुन की लाली है बेरों के गालों में l

होली आयी वन, लता,पत्र में,कुंजन में, 

होली आयी खलिहान पेड़ की डालों में ll


जो थाल भरे हैं खेत कनकमय रंगों की, 

मदमस्त झूमते मंद-मंद मस्तानों से l

पक्षीगण हो उन्मुक्त डाल से उतर उतर, 

डूबें सोने के रंगों में.......... दीवानों से ll

आमों की बौर सुगंध  वादियों में छायी, 

चंचल फागुन की हवा बहकती चालों में l

होली आयी वन, लता, पत्र में,कुंजन में, 

होली आयी खलिहान पेड़ की डालों में ll


इन सबकी होली देख-देख उन्माद भरी, 

गाते मल्हार खेतिहर मन में मुस्काते हैं l

खुश होते देख पसीना अपना श्रमिक बंधु, 

होली के स्वागत गीत मधुर धुन गाते हैं ll

टिप्पा, राई, कर्मा की.....ऊँची तानों में, 

ढोलक,मृदंग की थाप, नगाड़ा तालों में l

होली आयी वन, लता,पत्र में, कुंजन में, 

होली आयी खलिहान पेड़ की डालों में ll

©संजीव शुक्ला 'रिक़्त'











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