खूब होली खेलो इस बार! ©गुंजित जैन

 भौजाई जी आकर कहतीं,

होली खेलूँ इस साल नहीं,

रंगों से मेरा 'लुक' बिगड़े,

तो मलना मुझे गुलाल नहीं,

सुधारा अपना मुख-आकार, 

हुईं झटपट-झटपट तैयार।


भैया जी छुपके से दौड़े,

भाभी जी को रंग लगाने,

भौजाई भी सरपट भागीं,

अपनी कोमल त्वचा बचाने,

शीघ्र उनका बिखरा शृंगार,

बना रंगीन नीर की धार।


सदा होती नटखट तकरार।

खूब होली खेलो इस बार।।


"काजल-पौडर पोत के, हुईं बहुत तैयार।

केवल जल की धार से, बिखर गया शृंगार।।"

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रंगों की थैली ठुकराकर,

बेटी दृढ़ता से बात कहे,

सूरज में वो न पड़े काली,

तो खिड़की पर ही खड़ी रहे,

किए जल्दी में बंद किवार,

हठी है उनकी सुता अपार।


थे बाबूजी चालाक बड़े

छल से बाहर उसे बुलाया,

देकर के नाम मिठाई का ,

छुपकर उसे गुलाल लगाया,

छोड़ सूरज के तप्त विचार

हुए सबमें उपहास हज़ार।


सुखों के बंद न करना द्वार।

खूब होली खेलो इस बार।।


"धूप कहाँ से रोक ले, सुख की सुगम बयार।

साथ पूर्ण परिवार के , खुशियों की बौछार।।"

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"क्या खेलूँ क्रूर बुढ़ापे में?"

चाचाजी बैठे कहकर के,

चल सकता पैरों पर अपने, 

आशीष यही हैं ईश्वर के,

किया यदि बातों का सत्कार,

करें कैसे, रंगों का वार?


ठंडाई में भाँग मिलाकर,

चाची ने फिर बुद्धि चलाई

चाचाजी की आयु उड़ी तब,

ज्यों चलती मनहर पुरवाई,

बुढ़ापे से जो थे लाचार,

किया ठंडाई का आभार।


आयु की अब लाँघो दीवार,

खूब होली खेलो इस बार।


"नाम लगाकर आयु का, बैठ गए थक-हार।

आयु न हो आनंद की, है यह जीवन सार।।"

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°


नफरत की छोड़ो दीवारें,

आनंदित घर-घर करते हैं,

गुजिया-लड्डू ढेरों खाकर,

होली को मनहर करते हैं,

लगाएं रंगों का अंबार,

उड़ाएं जल की रम्य फुहार।


रिश्तों के कोरे कपड़ों पर,

खुशियों के रंग लगाते हैं,

परिवार जनों के सँग मिलकर

हर क्षण उल्लास बढ़ाते हैं,

कराएं आशा का संचार,

बनाकर खुशियों का संसार।


सुखों का होली है त्योहार,

खूब होली खेलो इस बार।


"रंगों को लेकर आ गया, होली का त्योहार।

इस होली के रंग में..... खूब रँगे संसार।।"


©गुंजित जैन

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही जबरदस्त 👏👏👏😃😃😃🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

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  2. होली के रंगों से सराबोर एवं भावपूर्ण होली गीत 💐💐💐

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  3. अत्यंत अद्भुत लिखा है भैया, 👏👏

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