बहुत है ©परमानन्द भट्ट

 अकेले में हमें मिलता बहुत है

मगर वो भीड़ में बचता बहुत है


यही  है वक्त की उससे शिकायत

गमों के दौर में हँसता बहुत है


जिसे दुनिया दिवाना कह रही है

हमें वह शख़्स ही जँचता बहुत है


हमारे ख़्वाब में कल आप आये

निभाया आपने रिश्ता बहुत है


कहा जब सत्य हमने लोग बोले

ये पागल आदमी बकता बहुत है


तअल्लुक़ जो वतन से छोड़ आया

'मुजाहिर आँख में चुभता बहुत है'


'परम' को पा लिया जिसने यहाँ वो

हमेशा मौन ही रहता बहुत है


©परमानन्द भट्ट

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